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दूबड़ी आठें – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

दूबड़ी आठें 

दूबड़ी आठें भाद्रपद शुक्ल की अष्टमी को मनायी जाती है। पहले दिन रात्रि को चने-मोठ भिगो दें ओर अगले दिन सुबह के लिये थोड़ा सा खाना भी बनाकर रख लें। अष्टमी के दिन सवेरे पीली मिट्टी भिगो देते हैं। इसकी पूजा भी ओगद्वादस की तरह पटरा बनाकर की जाती है। ओगद्रादम के सामान ही थाली में सामान सजा लेते हैं। पटरे पर गौ-बछड़े को जगह मात बेटे-सात बहू और पांच या सात कुल्हियां व झाड़ू की सींख का दरवाजा बना लेते हैं। चने मोठ छीलते हुए पहले कहानी सुन लेते हैं। फिर लोटे का दूध मिला जल सूरज का देकर व अलग पानी लेकर चने, मोठ, लड्डू, फल का बायना मिनसकर सासूजी को देते हैं। पानी गमले में देते हैं। जिम वर्ष में घर में लड़की की शादी हो उस वर्ष उद्यापन करते हैं। पहले दिन लड़की मायके में आ जाती हैं ओर वह अपनी माँ का विशेष बायना (साडी-ब्लाऊज, मोठ, चने, लड्डू ओर पैर के के रुपये) साथ में अपना बायना (एक ढक्‍कन वाले भगोने में मोठ, चने, फल, मिठाई और रुपये) लेकर ससुराल वापिस जाती है। इस दिन लड़की को साड़ी-ब्लाकज और रुपये देते हैं और एक बायना प्रतिवर्ष कि तरह और दूसरा बायना विशेष निकालते हैं। उद्यापन वाले दिन पटरे पर चोदह बेटे व बहू बनाते हैं। इस दिन कहानी कहकर-सुनकर बायना मिनसकर सबसे पहले बासी रोटो खाते हैं उसके बाद पूरे दिन कुछ भी खा सकते हैं।
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