परिश्रम गौरव करने के वस्तु है
अमेरिका में स्वतंत्रता संग्राम के समय एक किलेबन्दी हो रही थी। कुछ सैनिको के द्वारा एक नायक उस काम को करा रहा था ! सैनिक किले की दीवार पर एक भारी लकडी चढ़ाने का प्रयत्त कर रहे थे, किंतु सफल नहीं हो रहे थे। नायक उन्हें आज्ञा तो दे रहा या और प्रोत्साहित भी कर रहा था, किंतु स्वयं लकडी उठाने में हाथ नहीं लगाता था
उधर से घोड़े पर बैठे एक सजन निकले। उन्होंने नायक से कहा-आप भी लकड़ी उठवाने में लग जाए तो लकडी ऊपर चढ़ जाय?
नायक ने उत्तर दिया -“मैं इस टुकड़ी का नायक है॥ आप मुझे क्षमा करे। वे सजन घोड़े से उतर पड़े अपना कोट उतार दिया टोपी अलग रख दी और कमीज की बाहे ऊपर चढ़ा कर सैनिको के साथ जुट गए। उनके परिश्रम और सहयोग का परिणाम यह हुआ की लकड़ी ऊपर चढ़ गयी।
“धन्यवाद महोदय ? नायक ने उन सजन को लकड़ी चढ़ जाने पर कहा।
अपना कोट पह्विनते हुए वे बोले-इसमें धन्यवाद की तो कोई बात नहीं। आपको जब कभी ऐसी आवश्यकता हो तो अपने प्रधान सेनापति के पास प्रस्ताव सन्देश भेज दिया करे, जिससे में आकर आपकी सहायता कर जाया करूँ, क्योंकि मुझे पता है की कि परिश्रम करना हीनता की नहीं, गौरव की वस्तु है।
प्रधान सेनापति ? बेचारा नायक तो हक्का बक्का रह गया। परतु प्रधान सेनापति घोड़े पर पर चढ़कर शीघ्रतापूर्वक वहा से आगे निकल गये।