सम्मान तथा मधुर भाषण से राक्षस भी वशीभूत
एक बार एक बुद्धिमान् ब्राह्मण एक निर्जन वन में घूम रहा था। उसी समय एक राक्षस ने उसे खाने की इच्छा से पकड़ लिया। ब्राह्मण बुद्धिमान् तो था ही, विद्वान भी था इसलिये वह न घबराया और न दुः:खी ही हुआ। उसने उसके प्रति सम्मान का प्रयोग आरम्भ किया।
उसने उसकी प्रशंसा बड़े प्रभावशाली शब्दों में आरम्भ की- राक्षस ! तुम दुबले क्यों हो? मालूम होता है, तुम गुणवान्, विद्वान् और विनीत होने पर भी सम्मान नहीं पा रहे हो और मूह तथा अयोग्य व्यक्तियों को सम्मानित होते हुए देखते हो; इसीलिये तुम दुर्बल तथा क्रोध से रहते हो। यद्पि तुम बढ़े बुद्धिमान हो तथापि अज्ञानी लोग तुम्हारी हँसी उड़ाते होंगे इसीलिये तुम उदास तथा दुर्बल हो।
इस प्रकार सम्मान किये जाने पर राक्षस ने उसे मित्र बना लिया और बड़ा धन देकर विदा किया।
इस प्रकार सम्मान किये जाने पर राक्षस ने उसे मित्र बना लिया और बड़ा धन देकर विदा किया।