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बिहारी जी गवाह-Bihari ji witness

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Bhihari Ji Gwaah

बिहारी जी गवाह

वृन्दावन के पास एक ब्राह्मण रहता था एक समय ऐसा आया कि उसके सभी घरवालो की मृत्यु हो गयी केवल वही अकेला बच रहा। उसने उन सबका श्राद्ध आदि करना चाहा और  इसके लियेे अपना मकान गिरवी रखकर एक सेेेठ से पाँच सौ रुपये उधार लिये।

ब्राह्मण धिरे-धीरे रुपये सेठ को लौटाता रहा, पर सेठ के मन में बेईमानी आ गयी। ब्राह्मण ने धीेरे-धीरे प्राय: सब रुपये लौटा दिये। दस-बीस रुपये बच गए। सेठ ने उन रुपयो को उस के खाते में जमा नहीं किया। बही के दूसरे पत्रे पर लिख रखा और पूरे रुपयों की ब्राह्मण पर नालिश कर दी। ब्राह्मण एक दिन मन्दिर में बैठा था कि उसी समय कोर्ट का चपरासी नोटिस लेकर आया। नोटिस देखकर ब्राह्मण रोने लगा उसने कहा कि ‘मैंने सेठ के करीब-करीब सारे रुपये चुका दिये। फिर मुझ पर नालिश क्योंकी गयी। ‘चपरासी ने पूछा-‘तुम्हारा कोई गवाह भी है?’ उसने कहा-‘ और कौन गवाह होता, हाँ, मेरे बिहारी जी सब जानते हैं, वे जरूर गवाह हैं। ‘चपरासी ने कहा-‘रोओ मत, मैं कोशिश करूँगा। ‘चपरासी ने जाकर जज साहब से सारी बातें कहीं।
Bihari ji Witness
जज साहब ने समझा-‘कोई बिहारी नामक मनुष्य होगा।’ उन्होंने बिहारी के नाम से गवाही देने के लिये एक नोटिस जारी कर दिया और चपरासी को दे आने के लिये कहा।चपरासी ने आकर ब्राह्मण से कहा – नोटिस दे दें, बताओ वह कहाँ रहता है? “ब्राह्मण ने कहा-भैया! तुम मन्दिर की दीवाल पर साट दो।’ चपरासी नोटिस साटकर चला गया – मैं गवाह को जिस दिन मुकदमे की तारीख थी उस दिन की पहली रात्रि को ब्राह्मण रात भर मन्दिर में बैठा रोता रहा।
सूर्योदय के समय उसको कुछ नींद-सी आा गयी। तब उसको ऐसा मालूम पड़ा मानो श्री बिहारी जी कह रहे हैं-‘घबरा मत, मैं तेरी गवाही दूँगा।’ अब तो वह निश्चिन्त हो गया। वह अदालत में गया वहाँ जब जज ने बिहारी गवाह को बुलाने की आज्ञा दी, तब तीसरी आवाज पर-हाजिर है!’ कहकर एक सुन्दर युवक कटघरे के पास आकर खड़ा हो गया और जज की तरफ देखने लगा। जज ने ज्यों ही उसको देखा, उनके हाथ से कलम गिर गयी और वे पंद्रह मिनट तक वैसे ही बैठे रहे। उनकी पलक नहीं पड़ी। न शरीर ही हिला। कुछ बोल भी नहीं पाये।
पंद्रह मिनट बाद जब होश आया तब उन्होंने बिहारी गवाह से सारी बातें पूछीं। बिहारी गवाह का केवल मुँह खुला था, बाकी अपने सारे शरीर को वह एक कम्बल से ढके हुए था। उसने कहा-‘मैंने देखा है – इस ब्राह्मण ने सारे रुपये चुका दिये हैं। थोड़े से रुपये बाकी होंगे। मैं सदा इसके साथ जाया करता था।’ यह कहकर उसने एक-एक करके सारी बातें बतानी शुरू कर दीं। उसने कहा-‘रुपये सेठ ने इसके खाते में जमा नहीं किये हैं। बही के दूसरे पत्रे में एक दूसरे नाम से जमा है। मैं बही का वह पन्ना बता सकता हूँ।’ तब जज उसको साथ लेकर सेठ की दूकान पर पहुँचे।
 वहाँ जाने पर बिहारी गवाह ने सब बताना शुरू किया। वह जो-जो बोलता गया, जज वही देखते गये और अन्त में जिस पन्ने में जिस नाम से रुपये जमा थे, वह पत्रा मिल गया।
जज ने सारी रकम बिहारी के बताने के अनुसार जमा पायी। इसके बाद ज्यों ही जज ने आँख उठाकर देखा तो वहाँ कोई नहीं था। कचहरी में जाकर जज ने कड़ा फैसला लिखा और वहीं बैठे-बैठे इस्तीफा लिखकर संन्यास ग्रहण कर लिया।-कु० रा०
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