हिंसा का कुफल
कुछ
समय पूर्व बलरामपुर में झारखंडी नामक शिव मन्दिर के निकट बाबा जानकी दास जी
रहते थे। वैराग्य एवं सदाचारमय जीवन
ही उनका आदर्श था। शिव मन्दिर के निकट पश्चिम की ओर
एक बृहत्सरोवर अब भी वर्तमान
है। उसमें ‘सुखी मीन जहँनीर
अगाधा’ की भाँति स्वच्छन्द
रूप से असंख्य मछलियाँ निवास करती थीं। मछलियों के
ऊपर बाबा की करुणा की छत्र छाया थी।
समय पूर्व बलरामपुर में झारखंडी नामक शिव मन्दिर के निकट बाबा जानकी दास जी
रहते थे। वैराग्य एवं सदाचारमय जीवन
ही उनका आदर्श था। शिव मन्दिर के निकट पश्चिम की ओर
एक बृहत्सरोवर अब भी वर्तमान
है। उसमें ‘सुखी मीन जहँनीर
अगाधा’ की भाँति स्वच्छन्द
रूप से असंख्य मछलियाँ निवास करती थीं। मछलियों के
ऊपर बाबा की करुणा की छत्र छाया थी।
फलस्वरूप किसी को
भी तालाब की मछलियों को मारने का साहस नहीं होता
था,यद्यपि तालाब के किनारे मांसाहारियों की ही बस्ती थी। बाबा के
अहिंसा-व्रत के फलस्वरूप मछलियों को न मारने की घोषणा नगर भर में व्याप्त थी।
भी तालाब की मछलियों को मारने का साहस नहीं होता
था,यद्यपि तालाब के किनारे मांसाहारियों की ही बस्ती थी। बाबा के
अहिंसा-व्रत के फलस्वरूप मछलियों को न मारने की घोषणा नगर भर में व्याप्त थी।
एक बार की बात है कि
उस नगर में एक मुसलमान दारोगा स्थानापन्न
होकर आया। बाबा की घोषणा
उसके कानों में भी पड़ गयी।
कट्टर यवन बाबा की इस घोषणा से
जल उठा और उसने
तालाब में मछली मारने का पक्का निश्चय कर लिया। क्रोध से
जलता हुआ वह बाबा की हस्ती देखने पर उतारू हो गया
उस नगर में एक मुसलमान दारोगा स्थानापन्न
होकर आया। बाबा की घोषणा
उसके कानों में भी पड़ गयी।
कट्टर यवन बाबा की इस घोषणा से
जल उठा और उसने
तालाब में मछली मारने का पक्का निश्चय कर लिया। क्रोध से
जलता हुआ वह बाबा की हस्ती देखने पर उतारू हो गया
फलतःउसने
अपने साले को मछली मारने के लिये
तालाब पर भेजा। किंतु ‘जाको राखे साइयाँ
मारि सके ना कोय”मध्याह्न तक खोज करते रहने पर
भी एक मछली भी उसके
हाथ न आ सकी।
बाबा जी ने सुना कि दारोगा जी का साला
तालाब में मछलियों का शिकार कर रहा है,
तो वेअविलम्ब उसके पास जाकर
बोले-‘बेटा ! मैं किसी को भी इस
तालाब की मछलियों को नहीं मारने देता
हूँ।अपनी बंसी निकालकर चले
जाओ। बेचारी गरीब मछलियों को
न मारो।
अपने साले को मछली मारने के लिये
तालाब पर भेजा। किंतु ‘जाको राखे साइयाँ
मारि सके ना कोय”मध्याह्न तक खोज करते रहने पर
भी एक मछली भी उसके
हाथ न आ सकी।
बाबा जी ने सुना कि दारोगा जी का साला
तालाब में मछलियों का शिकार कर रहा है,
तो वेअविलम्ब उसके पास जाकर
बोले-‘बेटा ! मैं किसी को भी इस
तालाब की मछलियों को नहीं मारने देता
हूँ।अपनी बंसी निकालकर चले
जाओ। बेचारी गरीब मछलियों को
न मारो।
बाबा की बात सुनकर वह
सरोष चला गया और घर
पहुँचकर सारा समाचार दारोगा से
कहा। उसके कथन पर दारोगा क्रोध से तिलमिला उठा। दूसरे ही दिन
अन्य साधनों और कर्मचारियों के सहित
मछलियों का शिकार करने के लिये उसने अपने
साले को यह कहकर भेजा कि
‘तुम चलो, काम शुरू
करो, हम अभी आते हैं।’
उसने पहुँचते ही मछलियों को मारना
शुरू किया। बाबा जी यह सुनते ही
वहाँ पहुँचकर कुछ रोष भरे शब्दों में उसे फटकारने लगे-‘मैंने तुमको कल ही रोक दिया
था किंतु तुमने मुझे शक्तिहीन समझकर नहीं
माना।
सरोष चला गया और घर
पहुँचकर सारा समाचार दारोगा से
कहा। उसके कथन पर दारोगा क्रोध से तिलमिला उठा। दूसरे ही दिन
अन्य साधनों और कर्मचारियों के सहित
मछलियों का शिकार करने के लिये उसने अपने
साले को यह कहकर भेजा कि
‘तुम चलो, काम शुरू
करो, हम अभी आते हैं।’
उसने पहुँचते ही मछलियों को मारना
शुरू किया। बाबा जी यह सुनते ही
वहाँ पहुँचकर कुछ रोष भरे शब्दों में उसे फटकारने लगे-‘मैंने तुमको कल ही रोक दिया
था किंतु तुमने मुझे शक्तिहीन समझकर नहीं
माना।
जानतेनहींहो, इस
तालाब की मछलियों के रक्षक श्रीहनुमान्जी हैं!’ तब तक दारोगा भी
आ पहुँचा था। वह हनुमान्जी का नाम
सुनते ही आग बबूला हो उठा
और बाबा को मारने के लिये अपने साले को ललकारा।
वह बाबा पर झपटा ही था
कि एक अज्ञात और अदृश्य
शक्ति ने उस नराधम को तालाब की
अथाह जल राशि में विलीन कर दिया। सब
लोग भयभीत हो गये और चारों
ओर हाहाकार मच गया।काठ से मारे
हुए दारोगा जी किसी भाँति शव को निकलवा कर
चुपचाप चले गये!
तालाब की मछलियों के रक्षक श्रीहनुमान्जी हैं!’ तब तक दारोगा भी
आ पहुँचा था। वह हनुमान्जी का नाम
सुनते ही आग बबूला हो उठा
और बाबा को मारने के लिये अपने साले को ललकारा।
वह बाबा पर झपटा ही था
कि एक अज्ञात और अदृश्य
शक्ति ने उस नराधम को तालाब की
अथाह जल राशि में विलीन कर दिया। सब
लोग भयभीत हो गये और चारों
ओर हाहाकार मच गया।काठ से मारे
हुए दारोगा जी किसी भाँति शव को निकलवा कर
चुपचाप चले गये!