तू भिखारी मुझे क्या देगा?
बादशाह अकबर विद्वानों, साधुओं और फकीरों का सम्मान करते थे। उनके यहां प्राय: देश के विभिन्न भागों से विद्वान् आया करते थे। किसी त्यागी साधु फकीरो को उनके पास पहुँचने में कठिनाई नहीं होती थी एक बार एक फकीर बादशाह के पास पहुँचे। बादशाह उन्हें सम्मानपूर्वक बैठाया। परंतु नमाज का समय हो गया था, इसलिये फकीर से अनुमति लेकर बादशाह वही पास में नमाज पढ़ने लगे। | नमाज पूरी हो जाने पर बादशाह प्रार्थना करने लगे -‘ पाक परवरदिगार। मुझ पर रहम करे।
मेरी फौज को कामयाबी दे। मेरा खजाना तेरी मेहरबानी से बढ़ता रहे। मेरे शरीर को तन्दुरुस्त रखे | फकीर ने बादशाह की प्रार्थना सुनी और उठकर चलते हुए। बादशाह नमाज तो पढ़ ही चुके थे। शीघ्रता से फकीर के पास आये और बोले -‘आप क्यों चले जा रहे हैं ? मेरे लायक कोई खिदमत फरमाये।
फकीर ने कहा – ‘मैं तुझसे कुछ माँगने आया था किंतु देखता हूँ कि तू तो खुद कंगाल है। तू भी किससे माँगता ही है। जिससे तू माँगता है, उसीसे मैं भी मांग लूंगा। तू भिखारी मुझे क्या देगा।