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131 भजन १५१

 भजन १५१

मन फूला-फूला फिरे जगत में कैसा नाता रे
माता कहे यह पुत्र नर,
हमारा बहिन कहे मेरा।
पेट पकरि के माता रोवै,
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अपना कोई नहीं भाई ।
बाग लगाओ बगीचा लगाओ,
और
इस पिंजड़े के प्राण निकल गए,
जन्म-जन्म का
तीन महीना तिरिया
लगाओ
रह गयो वाम
अकेला ।
अपना कोई नहीं भाई ।
सेवे,
केला।
छः महीना सगा भाई।
माना रोये,
कर गई
आस पराई।
अपना कोई नहीं भाई ।
पांच पच्चीसी बराती आए ले चल-चल होई
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
यह
गत दुनिया की होई ।
अपन कोई नहीं भाई ।

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