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चेतावनी गजल सिकस्ता ४१
पड़े अविद्या में सोने वालो खुलेगी आंखें तुम्हारी।
शरण में आने को सदगुरु की,
‘करो अपनी तैयारी कब तक। टेक
गया न बचपन वो खेल बिन है,
चढी जवानी ये चार दिन है।
समय बुढ़ापे का कठिन है,
अजब अटारी और चित्रसारी,
बढ़ी दौलत की जो खुमारी,
जो यज्ञ आदिक है कर्म नाना,
रहोगे ऐसे अनाड़ी कब तक।
मोलि मनोहर है तुमको नारी ।
रहेगी ऐसी ही जारी कब तक।
फल है इन्हीं का सुख स्वर्ग पान।
सहोगे संकट ये भारी कब तक।
मिटे न इनसे भव आना जाना,
कबीर तो कहते है पुकारी,
मगर तुम्हीं को है अखितयारी ।
बनोगे सच्चे विचारी कब तक ।
सुनो अगर ना सुनी हमारी
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