चेतावनी गजल ४०
चोरी प्रभु से करिके छिपावोगे सिर तरे।
अपना सच्चाई इसको दिखाओगे किस तरे। टेक
हर एक जगह में हरदम रहता है वो हाजिर |
उससे ये अन्धाधुन्ध चलावोगे किस तरे।
दुनिया की दो आंखों में यों धूल डालने।
आंखे हजार उसको बचायोगे किस तरे ।
जो कुछ किया है तुमने पाप जान ठमके।
चोरी प्रभु से करिके छिपावोगे सिर तरे।
अपना सच्चाई इसको दिखाओगे किस तरे। टेक
हर एक जगह में हरदम रहता है वो हाजिर |
उससे ये अन्धाधुन्ध चलावोगे किस तरे।
दुनिया की दो आंखों में यों धूल डालने।
आंखे हजार उसको बचायोगे किस तरे ।
जो कुछ किया है तुमने पाप जान ठमके।
करावोगे किस तरे।
अपराध उसका माफ
ज्ञानी जो है विकाल का बध घट की जानता
ज्ञानी असत्य उससे बनाओगे किस तरे ।।
अपराध उसका माफ
ज्ञानी जो है विकाल का बध घट की जानता
ज्ञानी असत्य उससे बनाओगे किस तरे ।।