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राग काफी ८०

राग काफी ८०
आई गवनवा की सार,
उमरि अबहीं मोहि बारी। टेक
साज समाज पिया ले आये,
और कहरिया चारी
बलमा बेददी अचरा पकरि के,
जो रै गठरिया हमारी ।
सखि सब गावत गारि,
विधि गति बाम कछु समझि परत न
बैरी भई महतारी ।
रोय-२ अंखिया मोरी पोछत,
घरवा से देत निकारी।
भई सबको हम भारी ।
गौना कराय पिया ले जाय,
इत उत बाट निहारी।
छूटत गांव नगर से नाता,
छूटे महल अटारी ।
कर्म गति टारे न टारी ।
नदिया किनारे बलम मोर सखियां,
दिन्ह घूघट पट टारी ।
थरथरात तन कांपन लागे,
काहु न देख हमारी ।
पिया लै आए गोहारी ।

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