वे नर हुए नदी के पार,जिन बन्दा की नीत डटी।
राजा हरिश्चन्द्र चले लिकड के,
सब कुनबे की बांह पकड़ के।
जिनके नोकर कई हज़ार,
ना प्यारा ते विपत कटी।।
कोए-२ कर गया अच्छी करनी,
तज के सेज सह गया धरनि।
उन्हें आपा लीन्हा मार,
उन की आवागमन मिटी।।
दधीचि था ब्रम्हा का जाया,
जिन्हें ऋषियों को सौंप दी काया।
उन हाडाँ के बने हथियार,
वर्तरासुर की रान्ध कटी।।
तने रे छज्जू इब लग ना चेती,
तेरी बिन भजन उजड़ रही खेती।
सिर पे मोत रही ललकार,
छिन छिन जा उम्र घटी।।