कबीर भजन १४०
संतो। बोले जग मारे।
अनबोले कैसे बनि बिरहै।
शब्दाहि कोई न विचारे ।
पहले जन्म पूत भयऊ।
बाप जन्म लिया पाछे।
बाप पूत के एक महंतारी,
अचरज को काछे।
ऊपर राजा टीका बैठी..
बिगहर करे खाबोरि।
ज्ञान बपुरा वरनि ठाकुर,
बिल्ली घर में दासी।
कागज कार कारकुण्ठ आगे,
बैल करे पटवारी।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
भसहीं न्याय तिवारी।
बाप जन्म लिया पाछे।
बाप पूत के एक महंतारी,
अचरज को काछे।
ऊपर राजा टीका बैठी..
बिगहर करे खाबोरि।
ज्ञान बपुरा वरनि ठाकुर,
बिल्ली घर में दासी।
कागज कार कारकुण्ठ आगे,
बैल करे पटवारी।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
भसहीं न्याय तिवारी।