Search

कबीर भजन गजल-६८

कबीर भजन गजल-६८

पड़े अविद्या में सोने वालों
खुलेंगी आंखें तुम्हारी कब तक।
शरण में जाने को सतगुरु की,
करोगे अपनी तैयारी कब तक।
गया न बचपन दो चार दिन है,
चढ़ी जवानी ये चार दिन है।
सपुय बुढ़ापे का फिर कठिन है,
रहोगे ऐसे अनाड़ी कब तक,

अजब अनारी और चित्रासारी,
मिली मनोहर तुमको नारी।
बड़ी है दौलत की खुमारी,
रहेगी ऐसे ही जारी कब तक।
जो यज्ञ आदिक है कर्म जाना,
फल है इन्हीं का सुख स्वर्ग पाना।
मिले न इससे भव आना,
सहोगे संकट ये भारी तब तक।
कबीर तो कहते हैं पुकारो,
मगर तुम्हीं को अरूतियारी ।
Share this article :
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply