पीपल का पूजन क्यों?
गीता में भगवान् श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं’अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम्’ अर्थात् “मैं सब वुक्षों में पीपल का वृक्ष हूं।! इस कथन में उन्होंने अपने आपको पीपल के वृक्ष के समान ही घोषित किया है। पद्मपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान् कष्ण का रूप हे। इसीलिए इसे धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठ देव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधि व॒त् पुजन आरंभ हुआ। अनेक अवसरों पर पीपल की पूजा का विधान है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में साक्षात् भगवान् विष्णु एवं लक्ष्मी का वास होता है। पुराणों में पीपल (अश्वत्थ) का बड़ा महत्व बताया गया हैमूल विष्णु: स्थितो नित्यं स्कन्धे केशव एवं चा।
नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान्. हरि:॥ + फलेउच्युतो न सनन््देह: सर्वदेवे : समन्वित:॥ स एव विष्णुर्द्मम एवं मूर्तों महात्मभि: सेवतिपुण्यमृल:। यस्याश्रय: पापसहसर्त्रहन्ता भवेन््नृणां कामदुघो गुणाद्य:॥
-“स्कदेपुराण/नागरखंड 247/41-42, 44
अर्थात् ‘पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान् हरि ओर फल में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवाम करते हैं। यह वृक्ष मूर्तिमान श्रीविष्णुस्वरूप है। महात्मा पुरुष इस वृक्ष के पुण्यमय मूल की सेवा करते हैं। इसका गुणों से युक्त ओर कामनादायक आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों का नाश करने वाला हे।’ पद्मपुराण के मतानुसार पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु लंबी होती है। जो व्यक्ति इस वृक्ष को पानी देता हे, वह सभी पापों से छुटकारा पाकर स्वर्ग को जाता है। पीपल में पितरों का वास माना गया है। इसमें सब तीर्थों का निवास भी होता है। इसीलिए मुंडन आदि संस्कार पीपल के नीचे करवाने का प्रचलन है। महिलाओं में यह विश्वास है कि पीपल की निंरतर पूजा अर्चना व परिक्रमा करके जल चढाते रहने से संतान की प्राप्ति होती है, पुत्र उत्पन्न होता है, पुण्य मिलता है, अदृश्य आत्माएं तृत्प होकर सहायक बन जाती हैं। कामनापूर्ति के लिए पीपल के तने पर सूत लपेटने की भी परंपरा है। पीपल की जड़ में शनिवार को जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है। शनि की जब साढेसाती दशा होती है, तो लोग पीपल के वृक्ष का पूजन और परिक्रमा करते हैं, क्योंकि भगवान् कृष्ण के अनुसार शनि की छाया इस पर रहती है। इसकी छाया यज्ञ, हवन, पूजापाठ, पुराणकथा आदि के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। पीपल के पत्तों से शुभकाम में वंदनवार भी बनाए जाते हैं। धार्मिक श्रद्धालु लोग इसे शंदिर परिसर में अवश्य लगाते हैं। सूर्योदय से पूर्व पीपल पर दरिद्रता का अधिकार होता है और सूर्योदय के बाद लक्ष्मी का अधिकार होता है। इसीलिए सूयोदय से पहले इसकी पूजा करना निषेध किया गया है। इसके वृक्ष को काटना या नष्ट करना ब्रह्महत्या के तुल्य पाप माना गया है। रात में इस वृक्ष के नीचे सोना अशुभ माना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल रात दिन निरंतर 24 घंटे आक्सीजन देने वाला एकमात्र अद्भुत वृक्ष है। इसके निकट रहने से प्राणशक्ति बढ़ती है। इसकी छाया गर्मियों में ठंडी और सर्दियों में गर्म रहती है। इसके अलावा पीपल के पत्ते, फल आदि में औषधीय गुण रहने के कारण यह रोगनाशक भी होता है।