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शोक के अवसर पर हर्ष क्यों ?-Why joy on the occasion of mourning?

शोक के अवसर पर हर्ष क्यों ?

( श्रीकृष्णका अर्जुनके प्रति प्रेम)
भीम का महावीर राक्षसपुत्र घटोत्कच मारा गया पाण्डव् शिविर में शोक छाया है, सबकी आँखों से आँसु बह रहे हैं ।केवल श्रीकृष्ण प्रसन्न हैं। वे बार-बार आनन्द से सिंहनाद करते और हर्ष से झूमकर नाच उठते हैं तथा अर्जुन को गले लगाकर उसकी पीठ ठोंकते हैं!
भगवान को इतना प्रसन्न देखकर अर्जुन ने पूछा “मधुसूदन! घटोत्कच की मृत्यु से अपना सारा परिवार शोक-सागर में डूबा हुआ है। अपनी सारी सेना विमुख होकर भाग रही है। आप इस अवसर में इतने प्रसन्न क्यों हैं ? मामूली कारण से तो आप ऐसा करते नहीं। क्या बात है, कृपया बताइये।’
भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने कहा -‘ अर्जुन! मेरे लिये सचमुच आज बड़े ही आनन्द का अवसर है। घटोत्कच तो मरा, पर मेरा प्राण प्रिय अर्जुन बच गया। मुझे इसी की प्रसन्नता है। कर्ण के पास कवच-कुण्डल थे। उनके रहते वह अजेय था, उनको तो इन्द्र माँगकर ले गये। पर इन्द्र ने कर्ण को एक ऐसी शक्ति दे गये, जिसके उनके पास रहते मैं सदा तुम्हारे प्राणों को संकटमें ही मानता था।
Why joy in mourning?
कर्ण ब्राह्मणभक्त, सत्यवादी, ब्रतधारी, तपस्वी और शत्रुओं पर भी दया करने वाले हैं। इसीलिये उनको “वृष ‘ या ‘धर्म’ कहते हैं। उन्हें यों ही कोई नहीं मार सकता, फिर ‘शक्ति’ रहते तो मार ही कौन सकता था। कर्ण उस शक्ति से तुम्हें मारना चाहते थे। आज उस शक्ति से घटोत्कच मारा गया, अतएव अब कर्ण को मरा ही समझो। इसी से मुझे प्रसन्नता है।
‘रही घटोत्कच के मरने की बात, सो माना कि घटोत्कच अपने घर का बच्चा था और महावीर भी था। परंतु वह पापात्मा, ब्राह्मण द्वेषी और यज्ञों का नाश करने वाला था। ऐसे खलों को भी मैं स्वयं मारना चाहता हूँ। इससे उसका विनाश तो मैंने ही करवाया है। मैं तो सदा वहीं क्रीडा किया करता हूँ जहाँ वेद, सत्य, दम, पवित्रता, धर्म, कुकृत्य में लजञा, श्री, धैर्य और क्षमा का निवास है।
इसीलिये मैं पाण्डवों के साथ हूँ। अर्जुन! तुम मेरे प्राणप्रिय हो, आज इस प्रकार तुम्हारे बच जाने से मुझे अत्यन्त हर्ष है। भगवान के प्रेमपूर्ण वाक्यों को सुनकर अर्जुन गदगद हो गये। अर्जुन का समाधान हो गया। फिर सात्यकि ने पूछा–‘ भगवन्‌! जब कर्ण ने वह अमोघ शक्ति अर्जुन पर ही छोड़ने का निश्चय किया था, तब उसे छोड़ा क्‍यों नहीं?
अर्जुन तो नित्य ही रणभूमि में उनके सामने पड़ते थे।! इस पर भगवान्‌ श्रीकृष्ण बोले -‘सात्यके! दुर्योधन, दुःशासन, शकुनि और जयद्रथ – ये सभी प्रतिदिन कर्ण को यह सलाह दिया करते थे कि तुम इस शक्ति का प्रयोग केवल अर्जुन पर ही करना। अर्जुन के मारे जाने पर सारे पाण्डव और साथी आप ही मर जायेंगे और कर्ण भी यह प्रतिज्ञा कर चुके थे।
वे प्रतिदिन ही उस शक्ति के द्वारा मारने की बात सोचते थे, पर ज्यों ही वे सामने आते कि मैँ उनको मोहित कर देता। यही कारण है कि बे शक्ति का प्रयोग अर्जुन पर नहीं कर सके। इतने पर भी सात्यके! वह शक्ति अर्जुन के लिये मृत्युरूप है इस चिन्ता के मारे मैं सदा उदास रहता था, मुझे रात को नींद नहीं आती थी। अब वह शक्ति घटोत्कच पर पड़कर नष्ट हो गयी।
यह देखकर मुझे लगता है कि अर्जुन मृत्यु के मुख से छूट गये। मैं युद्ध में अर्जुन की रक्षा करना जितनी आवश्यक समझता हूँ, उतनी पिता, माता, तुम-जैसे भाई और अपने प्राणों की भी रक्षा आवश्यक नहीं समझता। तीनों लोकों के राज्य की अपेक्षा भी कोई दुर्लभ वस्तु मिलती हो तो उसे भी मैं अर्जुन के बिना नहीं चाहता। इसीलिये आज अर्जुन मानो मरकर पुनः वापस आ गये हैं, यह देखकर ही मुझे बड़ा भारी हर्ष हो रहा है।
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