मंगलागौरी का उद्यापन
उद्यापन विक्रम संवत् का मंगलागौरी का उद्यापन 20 या 16 मंगलवार करने के बाद ही करना चाहिए। जिस दिन उद्यापन करें उस दिन कुछ नहीं खाना चाहिए। शाम को सिर सहित स्नान करके गठजोडे से पूजा करनी चाहिए। पूजा चार ब्राह्मणों से करायें। एक चोकी के चारों पैरों की तरफ केले का खम्भ बांध दें। एक ओढने से ढके मण्डप में कलश रखकर उसके ऊपर एक कटोरी ढककर सोने की मंगला गौरी बनवाकर उसमें बिठाएँ। मंगलागौरी को को आंडी , ब्लाऊज, ओढ़नी उढाकर नथ पहनाएँ। सुहाग की सारी चीजें चढ़ायें।
मंगलागौरी की मंगलवार को पूजा करने के बाद जप का गान करें। चार पीतल के भिगोनों में चावल, रुपया डालकर रख दें। जो कि चारों ब्राह्मण को दे दें। चाँदी की सिल, सोने का लोटा बनाकर रखें। बाद में हवन करके कहानी सुनने के बाद आरती करें।
चांदी के 16 दीपक बनवाकर उसमें सोने की 16 बत्ती भी डाल दें। फिर एक चाँदी के कटोरे में आटे के 16 लड्डू, रुपया और एक ब्लाऊज रखकर सास के पैर छूकर दें। जिन पण्डितों ने पूजा सम्पन्न की हो उनको खाना खिलाकर, धोती, अंगोछा, माला, लोटा व दक्षिणा दें।