गौतम बुद्ध जिन्हें हम सिद्धार्थ के नाम से भी जानते हैं। उनका प्रवचन चल रहा था। एक व्यक्ति हर रोज प्रवचन सुनने आता था। बुद्ध अपने प्रवचन में लोभ मोह अहंकार द्वेष आदि छोड़ने की बात किया करते थे।
एक दिन वह व्यक्ति गौतम बुद्ध के पास आकर बोला, बुद्ध जी मैं एक महीने से आप का प्रवचन रोज सुन रहा हूँ। परन्तु मुझ पर उसका कोई असर नहीं हो रहा है। क्या मुझ में कोई कमी है? या उसका कोई कारण है?तब बुद्ध ने उस व्यक्ति से पूछा, तुम कहाँ रहते हो?
उसने उत्तर दिया,–श्रावस्ती।
एक दिन वह व्यक्ति गौतम बुद्ध के पास आकर बोला, बुद्ध जी मैं एक महीने से आप का प्रवचन रोज सुन रहा हूँ। परन्तु मुझ पर उसका कोई असर नहीं हो रहा है। क्या मुझ में कोई कमी है? या उसका कोई कारण है?तब बुद्ध ने उस व्यक्ति से पूछा, तुम कहाँ रहते हो?
उसने उत्तर दिया,–श्रावस्ती।
![गौतम बुद्ध की इस छोटी सी बात ने पूरा जीवन बदल दिया।-This small talk of Gautama Buddha changed his whole life. 3 budha](https://i0.wp.com/aakhirkyon.in/wp-content/uploads/2020/04/budha.webp?resize=300%2C199&ssl=1)
बुद्ध ने फिर पूछा, तुम श्रावस्ती अपने गांव कैसे जाते हो? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, कभी बैलगाड़ी से और कभी घोड़े से जाता हूँ। बुद्ध ने फिर से उस व्यक्ति से उस व्यक्ति से प्रश्न किया –तुम्हें श्रावस्ती पहुंचने में कितना समय लगता है? तब उसने समय का हिसाब लगा कर बताया।
बुद्ध ने उस व्यक्ति से पूछा, अब यहां बैठे बैठे क्या तुम श्रावस्ती पहुंच सकते हो? वह आश्चर्यचकित हुआ और बोला, यहां बैठे बैठे मैं भला कैसे श्रावस्ती पहुंच सकता हूँ?इसके लिए मुझे चलना पड़ेगा या किसी वाहन का सहारा लेना पड़ेगा।
बुद्ध ने कहा तुम बिल्कुल सही कह रहे हो कि व्यक्ति चलकर ही अपनी मंजिल तक पहुंच सकता है। उसी तरह जो अच्छी बातें होती हैं पहले उन्हें अपने जीवन में उतारना पड़ता है।और उनका अनुसरण करना पड़ता है। उसके अनुसार आचरण भी करना होता है। बुद्ध की यह बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा, अब मैं अपनी भूल समझ गया। आपने जो मार्ग बताया, उस पर आज से ही चलूँगा।
बुद्ध ने उस व्यक्ति को आशीर्वाद दिया। आशय यह है कि ज्ञान कोई भी हो, वह तभी सार्थक होता है, जब उसको व्यावहारिक रूप से जीवन में उतारा जाता है। केवल प्रवचन सुनने या उसका अध्ययन करने से कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
बुद्ध ने उस व्यक्ति से पूछा, अब यहां बैठे बैठे क्या तुम श्रावस्ती पहुंच सकते हो? वह आश्चर्यचकित हुआ और बोला, यहां बैठे बैठे मैं भला कैसे श्रावस्ती पहुंच सकता हूँ?इसके लिए मुझे चलना पड़ेगा या किसी वाहन का सहारा लेना पड़ेगा।
बुद्ध ने कहा तुम बिल्कुल सही कह रहे हो कि व्यक्ति चलकर ही अपनी मंजिल तक पहुंच सकता है। उसी तरह जो अच्छी बातें होती हैं पहले उन्हें अपने जीवन में उतारना पड़ता है।और उनका अनुसरण करना पड़ता है। उसके अनुसार आचरण भी करना होता है। बुद्ध की यह बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा, अब मैं अपनी भूल समझ गया। आपने जो मार्ग बताया, उस पर आज से ही चलूँगा।
बुद्ध ने उस व्यक्ति को आशीर्वाद दिया। आशय यह है कि ज्ञान कोई भी हो, वह तभी सार्थक होता है, जब उसको व्यावहारिक रूप से जीवन में उतारा जाता है। केवल प्रवचन सुनने या उसका अध्ययन करने से कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
धन्यवाद
संग्रहकर्त्ता उमेद सिंह सिंगल।