तारा भोजन की कथा (2)
एक साहुकार की बहू तारा भोजन कर रही थी। उसने सास से कहा, सासूजी मेरी कहानी सुन लो। सास बोली, मुझको पूजा-पाठ करना है, मेरे पास समय नहीं है। जिठानी के पास गई, भाभीजी मेरी कहानी सुन लो। जिठानी बोली, मुझे तो अभी खाना बनाना है। देवरानी से कहा तुम मेरी तारा भोजन की कहानी सुन लो। वह बोली, मुझे तो बच्चो को स्कूल भेजना है। उन्हें देर हो रही है। उसने अपनी ननद से कहा, दीदी मेरी कहानी सुन लो, उन्हें देरी हो रही है। मेरे तो ससुराल से बुलावा आया है। मुझे ससुराल जाने की तैयारी करनी हे। वह राजा के पास गई बोली आप मेरी कहानी सुन लो। राजा बोला, मुझे तो व्यापार का काम करना है ओर हिसाब-किताब देखना है। मेरे पास समय नहीं है। उसकी यह दशा देखकर भगवान ने स्वर्ग से विमान भेजा। उसे देखकर सास दौड़ी हुई आई, बहू में तेरे साथ चलूँगी।
वह बोली, आप तो अपनी पूजा-पाठ करो। जिठानी कहने लगी, मुझको ले चलो। वह बोली, ना जी, आपको खाना वगैरह बनाना है। देवरानी आई बोली-मैं भी चलूँ? वह बोली, तुमको तो बच्चों को तैयार करके कल भेजना है। तुम केसे चलोगी। ननद आई, बोली-भाभी मुझको भी ले चलो उसने कहा, नहीं दीदी आपको तो ससुराल जाने की करनी है। दौडे-दौड़े राजा आए में तो चले, वह बोली नहीं जी आपको तो कारोबार संभालना है, तुम कैसे चलोगे पड़ोसन भी आई बोली-बहन में चलूँ। वह बोली-हाँ बहन, तू चल, तूने पूरे कार्तिक मेरी कहानी सुनी है। दोनों विमान में बैठकर स्वर्ग जाने लगीं। रास्ते में बहू को अभिमान हो गया। वह सोचने लगी मैंने तो कहानी कही व्रत किया तब मुझे स्वर्ग का वास मिला है और पड़ोसन ने व्रत नहीं किया केवल कहानी ही सुनी थी। इसलिये मेरे कारण इसे भी स्वर्ग मिल गया। भगवान ने उसे वहीं विमान से नीचे फेंक दिया। वह पूछने लगी तो भगवान मेरा क्या अपरध है, जो मुझे छोड़कर जा रहे हो। भगवान बोले, तूने अभिमान किया है, फिर से तीन साल का तारा भोजन ब्रत कर, तब तुझे स्वर्ग मिलेगा।