गणेश जी की कथा
एक बार विनायक जी महाराज चुटकी में चावल कुलिया में दूध लिये फिर रहे थे कोई मेरी खीर बना दो-कोई मेरी खीर बना दो। लेकिन कोई नहीं बना रहा था। इतने से दूध ओर थोड़े से चावल कि भला कोई केसे बनाता! एक बुढ़िया बोली, ला बेटा मैं बना दूँ तेरी खीर! बुढ़िया बहार जाने लगी तो बोले कहां जा रही है, बेटा बर्तन माँग कर लाऊँ। बोले देख तेरे घर में, अंदर देखे दूध का टोकना भरा है, चावल की परात भरी है, चूल्हा जला के खीर बनाई, खीर निकलने लगी बहू ने कटोरा भर के दरवाजे के पीछे विनायक बाबा का छींटा लगा के खा ली, जब सारी खीर बन गई बुढ़िया बोली आ बेटा जीम ले, मैंने तो खा ली। बेटा तूने खीर कब खाई? जब तेरी बहू ने खाई! बुढ़िया बोली-तूने खीर झूठी कर ली। हाँजी, खीर निकल रही थी मैंने कटोरा भर के विनायक का छींटा लगाकर खा ली। विनायक से बुढ़िया बोली अब क्या करूँ। गणेश जी बोला बुढ़िया माई तुझसे जितनी खाई जाए खा, बाकी खीर बांट दे। बुढ़िया खीर बॉटने लगी तो दुनिया चर्चा करने लगी कि कल तो बुढ़िया भूखी मरती थी ओर आज खीर बांट रही है। झोंपडी को लात मारी महल बन गया, खूब धनदौलत भर गई, जैसे विनायक महाराज ने बुढ़िया को दिया ऐसे सब किसी को देना।
One Response
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