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कार्तिक की कहानी (3) – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

कार्तिक की कहानी (3) 

किसी गांव में एक सास थी। वह कार्तिक नहाने बारह कोस जाती, बारह कोस आती। बहू जो थी कठडे में पानी डालकर कहती-मन चंगा तो कठोती में गंगा। वहीं गंगाजी आ जाती थी ओर वह नहा लेती। एक दिन सास की नथ बह गई। घर पर बहू नहाई तो उसके कठडे में आ गई। उसने निकालकर रख ली। सास आई और उदास होकर बैठ गई। बहू बोली-सासू मां आप उदास क्‍यों बैठी हो? सास ने कहा-मेरी नथ गंगा में बह गई। बहू बोली-मेरे हाथ में आ गई। सास बोली-कैसे? वह बोली-सासूजी तुम तो बारह कोस जाती हो, और बारह कोस आती हो, में तो कठडे में पानी डालकर कहती हूँ कि मन चंगा तो कटोती में गंगा। गंगाजी यहीं पर आ जाती हैं। उसी में तुम्हारी भी नथ बहकर मेरे पास आ गई। और मैंने ले ली। जैसी सास को आई, किसी को नहीं आए, जैसी बहू को आई, वैसी सब को आए। 
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