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गंगा-जमुना की कहानी – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

गंगा-जमुना की कहानी 

एक गांव में दो बहनें रहती थीं। एक का नाम था गंगा तो दूसरी का नाम जमुना था। दोनों बहनें घूमते हुए एक साहूकार के खेत में से होकर जा रही थीं तो जमुना ने तेरह जौ के दाने तोड़ लिये तो गंगा बोली कि बहन तुझे तो ग्रहण लग गया। यह तो चोरी हो गई। तब जमुना बोली कि बहन अब ग्रहण कैसे धुलेगा? इस पर गंगा ने उत्तर दिया कि बारह वर्ष तक साहूकार के यहाँ नोकरी करेगी तभी तेरा ग्रहण उतरेगा। बाद में जमुना साहूकार के यहां गई और बोली कि मुझे नौकरी पर रख लो, मै तुम्हारे सारे काम-काज करूँगी। लेकिन तुम्हारे चार काम कदापि नहीं करूँगी, एक तो झूठे बर्तन नहीं माजूँगी, झाड़ू नहीं लगाऊँगी, बिस्तर नहीं बिछाऊँगी और दीया नहीं जलाऊँगी। फिर साहूकार ने उसे रख लिया। बारह वर्ष के बाद कुम्भ का मेला लगा। साहूकारनी कुंभ के मेले में जा रही थी तो जमुना ने उसको एक सोने का टका देकर कहा-मेहरी बहन गंगा को यह दे देना ओर कह देना कि तेरी बहन ने भेजा है। और वह अपने सुन्दर हाथों में हरी-हरी चूडियाँ पहन लेगी। 
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साहूकारनी ने वहाँ जाकर गंगाजी को सोने का टका देते हुए कहां कि जमुना यह टका दिया है तो उसने हाथ पसारकर ले लिया और बोली-मेरी बहन जमुना से कहना कि तेरे बारह वर्ष पूरे हो गये हैं इसलिये अब तू आ जा। साहूकार साहूकारनी आए तब जमुना मटके में पानी भर रही थी। वह दोनों जमुना से बोले कि तेरी बहन को हमने सोने का टका दे दिया था और उसने संदेश भेजा है कि अब तेरे बारह वर्ष पूरे रे गये, सो तू अब जा इतना सुनते ही जमुना जी वहां से सहस्र धारा होकर बहने लगीं। तब साहूकार-साहूकारनी दोनों उल्टे माथे पड़ गये और बोले कि अब हमारा ग्रहण केसे उतरेगा। जमुना माता होकर हमारे घर का काम किया, इसलिये अब हम पर ग्रहण लग गया। जमुना जी गंगा माता के पास गई तो गंगा माता जमुना जी से बोली कि तू साहूकार साहुकारनी को धैर्य बंधाकर आई है या नहीं? तब जामुना बोली कि मैं तो कुछ भी कहकर नहीं आई। गंगाजी बोलीं कि फिर से जा और उनको धीरज बंधा कर आ। नहीं तो उन्हे संतोष कैसे होगा! तब जमुना जी साहूकार और साहूकारनी के पास स्वप्न में आकर बोलीं कि उठो, मैं जमुना जी हूँ। उल्टे माथे क्‍यों पड़े हो? तुम तो उठकर खाओ-पीओ। तब वह बोले कि हम कैसे उठें, हमारे तो ग्रहण लगा है। मैंने तुम्हारे से ऊँचा-नीचा सारा काम करवाया है। तब जमुनाजी बोलीं कि तुम्हारे को कोई ग्रहण नहीं लगा। मैं तो अपना ग्रहण उतारने यहां आई थी। जब मैं तुम्हारे खेत से जा रही थी तो जौ के तेरह दाने तोड़ लिये थे, इसलिये मेरा ग्रहण उतर गया। मेरे बारह वर्ष पूरे हो गये, इसलिये तुम्हारी मुक्ति हो जायेगी। उन्होंने उठकर देखा तो सारे घर में बहुत-सा धन हो गया। हे गंगा-जमुना माता जैसे साहूकार और साहूकारनी को दर्शन दिये ओर मुक्ति कराई वैसे हमारी भी करना। कहते-सुनते सबकी करना।
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