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आँमला नोमी की कहानी – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

आँमला नोमी की कहानी 

एक आँवलिया राजा था जो रोज एक मन सोने के आंवले दान करता था ओर बाद में जीमता था। एक दिन उसके बेटों बहुओं ने देखा कि रोज इतने आवंले का दान करेंगे तो सारा धन खत्म हो जाएगा इसलिए इनका दान बन्द कर देना चाहिए। एक पुत्र आया और राजा से बोला कि आप तो सारा धन लुटा देंगे। इसलिए आप आवंले का दान करना बंद कर दीजिए। तब राजा ओर रानी उजाड़ में जाकर बेठ गए और वह आंवलों का दान नहीं कर सके, इसलिए उन्होंने कुछ भी नहीं खाया। 
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तब भगवान ने सोचा कि अगर हमने इनका सत्त नहीं रखा तो दुनिया में हमें कोई नहीं मानेगा। तब भगवान ने सपने में कहा कि तुम उठो और तुम्हारे पहले जैसी रसोई हो गई है और आवंले का वृक्ष लगा हुआ है। तुम दान करो और जीम लो। तब राजा रानी ने उठकर देखा तो पहले जैसा राज पाट हो गया है और सोने के आवंले वृक्ष पर फैले हुए हैं। तब राजा रानी सवा मन आंवले का दान करने लगे। उधर बहू बेटे से धर्म अन्नदाता का बेर पड़ गया। आसपास के लोगों ने कहा कि जंगल में एक आंवलिया राजा है सो तुम वहां चले जाओ तो तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। 
वे दोनों वहां पहुंच गए। वहां पर रानी अपने बेटे और बहु को देखकर पहचान गई और अपने पति से बोली कि इन लोगों से काम तो कम करायेंगे और मजदूरी ज्यादा देंगे। एक दिन रानी ने अपनी बहू को बुलाकर कहा कि मेरा सिर धोकर नहला दे। बहू सिर धोने लगी तो बहू की आंख में से पानी निकलकर रानी की पीठ पर पड़ा। तब रानी बोली कि मेरी पीठ पर आंसू क्‍यों गिरे हैं, मुझे बताओ। तो बहू बोली कि मेरी भी सासु की पीठ पर ऐसा ही मस्सा था और हमने उसे घर से बाहर निकाल दिया। वह एक मन आवंला का दान करते थे तो हमने उन्हें भगा दिया। तब सासू बोली-हम ही तुम्हारे सास ससुर हैं। तुमने हमें निकाल दिया था परन्तु भगवान ने हमारा सत्त रखा है। हे भगवान! जैसा राजा रानी का सत्त रखा वेसा सबका रखना। कहते सुनते सारे परिवार का सत्त रखना। इस कहानी के बाद बिन्दायक जी की कहानी सुनें।
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