साँपदा का डोरा
साँपदा का डेरा होली के दूसरे दिन धूलैंडी के दिन लें। कच्चे सूत के सोलह तार लेकर जलती होली को दिखाकर रख लेते हैं। फिर उसमे सोलह गांठ लगा दें। बाद में हल्दी में रंग ले। जल का लोटा, रोली चावल रखें और लोटे पर सतिया बनाएं। चावल चढाकर सोलह दाने नये जो के हाथ में लेकर सौपदा माता की कहानी सुन डोरे को गले में पहन लें। बाद में वेशाख के महीने में डोरा खोलें। डोग खोलें उस दिन सांपदा माता का ब्रत करें और कहानी सुनकर डोरा खोल दें। डोयग लेते समय जो दाने होते हें उन दानों को ‘रख दें। वही दाने लेकर डोरे से उस दिन सूरज भगवान को अर्थ्य दें। बाद में खुद जीम लें।
उद्यापन
बेटा हो या बेटे का विवाह हो तो उसी साल साँपदा माता का उद्यापन होता है। सोलह जगह चार-चार पूड़ी, हलवा रखें। एक तीयल रखकर हाथ फेरकर सासूजी के पैर छूकर दें। सोलह ब्राह्माणियों को जिमा दें। ब्राह्मणी के टीका लगा कर दक्षिणा दें।