कर्मफल
मार्ग में एक घायल सर्प तड़फड़ा रहा था। सहसों चींटिया उससे चिपटी थीं। पास से एक सत्युरुष शिष्य के साथ जा रहे थे। सर्प की दयनीय दशा देखकर शिष्य ने कहा-कितना दुखी है यह प्राणी।
गुरु बोले-कर्मफल तो सबको भोगना ही पड़ता है।
Result of Work |
शिष्य- इस सर्प ने ऐसा क्या पाप किया कि सर्प योनि में भी उसे यह कष्ट।
गुरु -तुम्हें स्मरण नहीं कि कुछ वर्ष पूर्व इस सरोवर के किनारे से हम लोग जा रहे थे तो तुमने एक मछुए को मछली मारने से रोका था।
शिष्य-वह दुष्ट मेरे रोकने पर मेरा ही उपहास करने लगा था।
गुरु-आज वही सर्प है और उसने जिन मछलियों को मारा था उन्हें अपना बदला लेने का अवसर मिला है। वे चींटियाँ होकर उल्फा हुई हैं।