विलक्षण दानवीरता – Prodigious Charity
कर्ण का वास्तविक नाम तो वसुषेण था। माता के गर्भ से वसुषेण दिव्य कवच और कुण्डल पहिने उत्पन्न हुए थे। उनका यह कवच, जो उनके शरीर से चर्म की भाँति लगा था, अस्त्र-शस्त्रों से अभेद्य था और शरीर के साथ ही बढ़ता गया था। उनके कुण्डल अमृतसिक्त थे। उन कुण्डलों के कानों में रहते, उनकी मृत्यु सम्भव नहीं थी।