Search

एक बात – One Thing Moral Story in Hindi

एक बात

उन दिनों विद्यासागर ईश्वरचन्द्र जी बड़े आर्थिक संकट में थे। उन पर ऋण हो गया था। यह ऋण भी हुआ था दूसरों की सहायता करने के कारण। उस समय उनका प्रेस, प्रेस की डिपाजिटरी और अपनी लिखी पुस्तकें ही उनकी जीविका के साधन थे। ऋण चुका देने के लिये उन्होंने प्रेस की डिपाजिटरी का अधिकार बेच देने का निश्चय किया। उनके एक मित्र थे श्रीव्रजनाथ जी मुखोपाध्याय। विद्यासागर ने मुखोपाध्यायजी से चर्चा की तो वे बोले – यदि आप डिपाजिटरी का अधिकार मुझे दे दें तो मैं उसे आप के इच्छानुसार चलाने का प्रयत्र करूगा।!

AVvXsEgovQPTd2l63JWew9G9us131d6Kftu5ZemunjCBN0iCNW0KN5tdkwIW8hCYJ4sYfIigzv9ZX1nHZ w3nS7Zkek Ccc0aOFEA58IBZxAJTvgLwoc4nF5 8ipGS5ruJGhmOzD3E4zXZU7 CeLslfBdmbu9haAqzr12n U7CUddWy5bi0ZG SJQE onm 9=s320

विद्यासागर ने सब अधिकार ब्रजनाथ जी को दे दिया। यह समाचार फैलने पर अनेक लोग विद्यासागर के पास आये। कई लोगों ने तो कई-कई हजार रुपये देने की बात कही; किंतु विद्यासागर ने सबको एक ही उत्तर दिया – ‘मैं एक बार जो कह चुका, उसे बदल नहीं सकता। कोई बीस हजार रुपये दे तो भी अब मैं यह अधिकार दूसरे को नहीं दूँगा।’ –सु० सिं० )

Share this article :
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply