सबसे अपवित्र है क्रोध
कहा जाता है कि भगवान्विश्वनाथ की पुरी काशी की बात है । गङ्गग स्नान करके एक संन्यासी घाट से ऊपर जा रहे थे। भीड़ तो काशी में रहती ही है, बचने का प्रयत्न करते हुए भी एक चाण्डाल बच नहीं सका, उसका वस्त्र उन संन्यासी जी से छू गया । अब तो संन्यासी को क्रोध आया। उन्होंने एक छोटा पत्थर उठाकर मारा चाण्डाल को और डाँटा-अंधा है क्या है, देखकर नहीं चलता; अब मुझें फिर स्नान करना पड़ेगा।
Most Unholy Is Anger |
चांडाल ने हाथ जोडकर कहा- अपराध हो गया, क्षमा करे । रही स्नान करने की बात सौ आप स्नान करें या न करें, मुझे तो अवश्य स्नान करना पड़ेगा।
संन्यासी ने आश्चर्य से पूछा- तुझे क्यों स्नान करना पड़ेगा ?
चाण्डाल बोला- सबसे अपवित्र महाचाण्डाल तो क्रोध है और उसने आप में प्रवेश करके मुझें छू दिया हैँ। मुझे पवित्र होना है उसके स्यशं से । संन्यासी जी ने लज्जा से सिर नीचा कर लिया ।