अन्याय से सिंहासन डोल उठता है
प्राचीन काल में नारद, पर्वत और बसु एक ही गुरू के पास पढ़ते थे। पर्वत मुनिकुल परम्परा से राजा बसु के परोहित थे । पर्वत मुनि शिष्यों को पढ़ा रहे तो प्रसंगवश ” अज ” शब्द !आ गया। पर्वत ने उसका अर्थ बकरा अर्थात् यज्ञ मं हाम के काम आने वाला पशु बताया।
नारद ने कहा – गुरुजी ने इसका यह अर्थ नहीं बताया था। उन्होंने कहा था–जो जन्मा न हो वह ” अज ” अर्थात् जा फिर न उगे, यज्ञाग्नि में होम की जाने वाली घास, ऐसा अर्थ किया था। पर्वत को गुरु की बात तो स्मरण आयी पर उस समय शिष्यों के बीच मान रक्षा के हेतु अपना ही अर्थ सिद्ध करने को डट गये।
वाद-विवाद होने लगा। दोनों ने राजा वसु के पास जाने का निश्चय किया। वहाँ जाने से पहले पर्वत की माता ने कहा – यदि राजा बसु ने सत्य बात कही तो तू झूठा बन जायेगा। पर्वत बोला – तो तू राजा वसु के पास जाकर पता कर कि मेरा अर्थ सही है या नहीं। पर्वत की माँ वसु के पास गयी।
पहले तो बसु ने इंकार कर दिया परन्तु बाद में गुरु पत्ती और गुरु पुत्र का मान रखने के लिए असत्य बोलने को राजी हो जाना पड़ा। थोड़ी ही देर में पर्वत और नारद भी वहाँ आ गये और उन्होंने राजा वसु से , पूछा–” अज ” शब्द का अर्थ गुरुजी ने क्या बताया था? राजा वसु ने पर्वत का पक्ष लेकर” अज ” का अर्थ बकरा बताया। नारद को अति दुःख हुआ लेकिन उन्होंने देखा कि राजा का सिंहासन हिल रहा है और राजा वसु जमीन परलुढ़क गये हैं। तभी नारद् बोल उठे – हे राजन्! असत्य बोलने से तम्हारा सिंहासन हिलने लगा है। ।