शास्त्रार्थ नहीं करूँगा
एक महात्मा थे। वे राधाष्टमी का बड़े समारोह के साथ बहुत सुन्दर उत्सव मनाते। एक दिन एक आदमी उनके पास आया और कहने लगा कि तुम बड़ा पाखण्ड फैला रहे हो, मैं तुमसे शास्त्रार्थ करूँगा। महात्मा-अभी तो मैं पूजा कर रहा हूँ। पीछे बात करना।
महात्मा पूजा करने के बाद मस्ती में कीर्तन करते हुए नाचने लगे। तब शास्त्रार्थ करने के लिये आये हरा पण्डित जी को दिखलायी पड़ा कि राधा-कृष्ण दोनों ही महात्मा के पीछे-पीछे नाच रहे हैं।
कीर्तन समाप्त होने पर महात्मा ने शास्त्रार्थ करने को कहा। तब वह चरणों में लोट गया और कहने लगा-मुझे जो समझना-देखना था सो मैंने समझ-देख लिया। अब शास्त्रार्थ नहीं करूँगा।