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निष्पाप हो वह पत्थर मारे -hit stone, who be innocent

निष्पाप हो वह पत्थर मारे
महात्मा ईसामसीह के सम्मुख एक नारी पकडकर ले आयी गयी थी। नगर के लोगों की भीड़ उसे घेरे हुए थी। लोग अत्यन्त उत्तेजित थे। वे चिल्ला-चिलाकर कह रहे थे कि उसे मार देना चाहिये। उस नारी पर दुराचरण का आरोप था और अपना अपराध वह अस्वीकार कर दे ऐसी परिस्थिति नहीं थी। उसके हाथ पीछे की ओर बँधे थे। उसने अपना मुख झुका रखा था ।
ईसा ने एक बार उस नारी की ओर देखा और एक बार उत्तेजित भीड़ की ओर। उन्होंने ठंडे स्वर में कहा…इसने पाप किया है, यह बात जब यह स्वयं अस्वीकार नहीं करती है तो अविश्वास करने का कोई कारण ही नहीं। यह पापिनी तो हैं।
A Former Stone-Pelter In Kashmir Explains What India Should Do To ...
Hit Stone, Who be Innocent
इसे दण्ड मिलना चाहिये…प्राणदण्ड ! भीड़ से लोग चिल्लाये।
अच्छी बात ! आप लोग जैसा चाहते हैं, वैसा ही करें ! इसे सब लोग पाँच-पाँच पत्थर मारें। ईसा ने उसी शान्त कग्नठ से निर्णय दे दिया।
बेचारी नारी काँप उठी। उसे दयालु कहे जाने वाले इस साधु से ही एक आशा थी और उसका यह निर्णया ब्धर भीड़ के लोगो ने पत्थर उठा लिये । परंतु इसी समय ईसा का उच्व स्वर गूँजा’- सावधान मित्रो ! पहला पत्थर इसे वह मारे जो सर्वथा निष्पाप हो। स्वयं पापी होकर जो पत्थर मारेगा, उसे भी यही दण्ड भोगना होगा।
उत्तेजित भीड़ मेँ उठे हाथ नीचे झुक गये। लोगों का चिल्लाना बंद हो गया। नारी ने अश्रुपूर्ण नेत्र उठाकर ईंसा की ओर देखा किंतु ईसा भीड़ को सम्बोधित कर रहे थे-मारो ! बन्धुओ, पत्थर मारो ! यह पापिनी नारी तुम्हारे सामने हैँ, निष्पाप पुरुष इसे पहला पत्थर मारे !
भीड़ के लोग धीरे-धीरे खिसकने लगे। थोडी देर मे तो वहाँ ईसा अकेले बच रहे थे । उन्होंने आगे बढकर उस नारी के बँधे हाथ खोल दिये और बोले-देवी ! तुम चाहे जहाँ जाने को अब स्वतन्त्र हो । परमात्मा दयासागर हैं। बच्चों का ऐसा कोई अपराध नहीं हो सकता जिनका उनका पिता क्षमा माँगने पर क्षमा न कर दे। उस परम पिता से तुम क्षमा माँगो।
भीड़ की उत्तेजना उस नारी को मार सकती थी किंतु ईंसा की दया ने उसकी पाप प्रवृत्ति का वध कर दिया । वह नारी पश्चाताप की ज्वाला में शुद्ध हो चुकी थी ।
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