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सर्वोत्तम धन – Great Money Is Soul

सर्वोत्तम धन

महर्षि याज्ञवल्कय की दो स्त्रियाँ थीं। एक का नाम था मैत्रेयी और दूसरी का कात्यायनी। जब महर्षि संन्यास ग्रहण करने लगे, तब दोनों स्त्रियों को बुलाकर उन्होंने कहा – मेरे पीछे तुम लोगों में झगड़ा न हो, इसलिये मैं सम्पत्ति का बँटवारा कर देना चाहता हूँ। मैत्रेयी ने कहा – स्वामिन्‌! जिस धन को लेकर मैं अमर नहीं हो सकती, उसे लेकर क्या करूँगी? मुझे तो आप अमरत्व का साधन बतलाने की दया करें।

याज्ञवल्क्य ने कहा – मैत्रेयी! तुमने बड़ी सुन्दर बात पूछी। वस्तुत: इस विश्व में परम धन आत्मा ही है। उसी की प्रियता के कारण अन्य धन, जन आदि प्रिय प्रतीत होते हैं। इसलिये यह आत्मा ही सुनने, मनन करने और जानने योग्य है। इस आत्मा से कुछ भी भिन्न नहीं है। ये देवता, ये प्राणी वर्ग तथा यह सारा विश्व जो कुछ भी है, सभी आत्मा है। ये ऋगादि वेद इतिहास, पुराण, उपनिषद्‌, श्लोक, सूत्र मन्त्रविवरण और सारी विद्याएँ इस परमात्मा के ही नि: श्वास हैं।

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यह परमात्म-तत्त्व अनन्त, अपार और विज्ञानघन है। यह इन भूतों से प्रकट होकर उन्हीं के साथ अदृश्य हो जाता है। देहेन्द्रिय-भाव से मुक्त हो जाने पर इसकी कोई संज्ञा नहीं रह जाती। जहाँ अज्ञानावस्था होती है, वहीं द्वैव का बोध होता है तथा अन्य को सूँघने, देखने, सुनने, अभिवादन करने और जानने का भ्रम होता है … किंतु जहाँ इसके लिये सब कुछ आत्मा ही हो गया है, वहाँ कौन किसे देखे, सुत्रे, जाने या अभिवादन करे ? वहाँ कैसा शोक, कैसा मोह, कैसी मृत्यु, जहाँ सब कुछ एकमात्र विज्ञानानन्दघन परमात्मा ही सर्वत्र देख रहा है।
ऐसा उपदेश करके महर्षि ने संन्यास का उपक्रम किया तथा उन्हीं के उपदेश के आधार पर चलकर मैत्रेयी ने भी परम कल्याण को प्राप्त कर लिया।
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