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GD Agarwal-environmentalist-Bio Graphy in Hindi

डॉ. गोपालदास अग्रवाल, जिन्हें जी.डी. अग्रवाल के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय वैज्ञानिक और सोशल अभियंता थे, जिन्होंने अपने योगदानों के लिए विशेष मान्यता प्राप्त की। उनका जन्म २३ जुलाई, १९३२ को हरियाणा के हरिद्वार गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री चंद्र चौधरी था। अग्रवाल ने अपनी शिक्षा की आधारशिला हरियाणा में रखी, और बाद में उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रूड़की से की।

अग्रवाल ने अपने वैज्ञानिक करियर की शुरुआत जलवायु और पर्यावरण विज्ञान में किया। उन्होंने अपने अनुसंधानों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने का प्रयास किया और अपने योगदानों से जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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उन्होंने अपने करियर के दौरान भारत सरकार के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों में भूमिका निभाई और अपने अनुसंधानों से अंतर्राष्ट्रीय मान्यता हासिल की। उन्होंने विश्वभर में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर चर्चाएं की और उनके अनुसंधानों को विश्वस्तरीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई।

अग्रवाल के विचारों में जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मानव गतिविधियों में जलवायु उत्सर्जन का है, जो उनके अनुसंधान के माध्यम से स्पष्ट हुआ।

अग्रवाल के योगदानों की महत्वपूर्ण भूमिका भारतीय जलवायु परिवर्तन अनुसंधान संस्थान (आईसीसीआर) के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने भारतीय संविदान को चित्रित किया।

अग्रवाल के अनुसंधान और विचारों के प्रकार से, उन्हें विश्वभर में अग्रणी वैज्ञानिकों में गिना जाता है। उन्होंने अपनी अद्वितीय योगदानों के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किए, जो उनके वैज्ञानिक समर्थन को दर्शाते हैं।

उन्हें ‘जल संरक्षक’ के रूप में भी जाना जाता है और उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक गंगा नदी के प्रदूषण के विरुद्ध अनशन किया था। उन्होंने सरकार से गंगा के साफ़ होने के लिए कई मांगे की थीं, जिसमें गंगा की शुद्धता के लिए अधिक सख्त कानून, निगरानी, और संवेदनशीलता की मांग शामिल थी। उनका अनशन ११० दिनों तक चला और इस अवधि में उन्हें सरकार ने कोई समाधान नहीं दिया। इस अनशन के बाद, उनकी सेहत बिगड़ी और उन्हें वाराणसी के संअख्या आरोग्य विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया, जहां उनका निधन ११ अक्टूबर २०१८ को हुआ। उनकी मृत्यु के बाद, सरकार ने उनकी मांगों को मानते हुए, २५ जनवरी २०१९ को उन्हें भारतीय जल रत्न सम्मानित किया।

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