लेकिन उनमें से एक साधु को किसी बात का भय नहीं था क्योंकि जीवन के प्रति उनका नजरिया थोड़ा अलग था। साधु ने सबसे पहले ‘रत्नाकर’ नामक इस लुटेरे से प्रश्न किया कि ‘तुम ये सब क्यों और किसके लिए कर रहे हो?’ अंत में साधु के पूछने पर उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि वे यह सब अपनी पत्नी और बच्चों के लिए कर रहे है। तब साधु ने उन्हें ज्ञान देते हुए कहा कि ‘जो भी पाप कर्म तुम कर रहे हो, उसका दंड केवल तुम्हें ही भुगतना पड़ेगा। तुम जाकर अपने परिवार वालों से पूछकर आओ कि क्या वे तुम्हारे इस पाप के भागीदार बनेंगे’ रत्नाकर ने ऐसा ही किया। उसने अपने घर जाकर ये बात अपनी पत्नी और बच्चों से पूछी। इस बात पर उसकी पत्नी और बच्चों ने अपनी असहमति प्रदान की और कहा कि ‘हम आपके इस पाप कर्म में भागीदार नहीं बनेंगे’।
तब वाल्मीकि को अपने द्वारा किए गए पाप कर्म पर बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने साधु मंडली को मुक्त कर दिया। साधु मंडली से क्षमा मांगकर जब वाल्मीकि लौटने लगे तब साधु ने उन्हें तमसा नदी के तट पर ‘राम-राम’ नाम जपकर, अपने पाप कर्म से मुक्ति का मार्ग बताया। वो सालों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए तपस्या में लीन रहे इस कारण से उनके चारों ओर चीटियों ने पहाड़ बना लिया। इसी तपस्या के फलस्वरूप ही वह वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए, क्योंकि संस्कृत में वाल्मिकी का अर्थ होता है चीटियों की पहाड़ी। उन्होंने ज्ञान प्राप्ति के बाद रामायण की महान रचना की। उन्हें आदिकवि के नाम से पुकारा गया और यही नाम आगे चलकर ‘वाल्मीकि रामायण’ के नाम से अमर हो गया…