देव उठनी एकादशी
कार्तिक के शुक्ल पक्ष की एकादशी को दवे प्रबोधिनी एकादशी या देव उठनी एकादशी कहते हैं। इस दिन शाम को जमीन को पानी से धोकर खडिया मिट्टी व गेरु से देवी के चित्र बनाकर सूखने के बाद उन पर एक रूपया, रूई, गुड, मूली, बैंगन, सिघांडे, बेर उस स्थान पर रखकर एक परात से ढक देते हैं। रात्रि में परात बजाकर, देव उठने के गीत या बधावा गाते हें। बधावा गाने के बाद दीपक से परात में बनी काजल सभी लगाते हें। शेष काजल उठाकर रख लेते हैं। आषाढ शुक्ल एकादशी से शयन किए हुए देव इस कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन उठते हैं और सभी शुभ कार्य विवाह, आदि इसी दिन से शुरू हो जाते हैं। यह पूजा उसी स्थान पर करते हैं तुलसी शालिग्राम विवाह पूरी धूमधाम से उमी प्रकार किया जाता है जिस प्रकार सामान्य विवाह। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि जिन दम्पतियों के कन्या नहीं होती, वे तुलसी विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त करते हैं।