Home Satkatha Ank बुरी योनि से उद्धार-Deliverance from bad vagina-863

बुरी योनि से उद्धार-Deliverance from bad vagina-863

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Buri Yoni Se Uddhar
बुरी योनि से उद्धार

प्राचीन काल में एक वन में एक सियार और एक वानर मित्र – एक ही स्थान पर रहते थे। दोनों को अपने पूर्व – स्मरण था। एक समय वानर ने सियार को जंगल में घणित शव को खाते देखकर पूछा – ‘मित्र! पूर्वजन्म में क्या किया था जिससे तुम्हें इतना पित तथा घृणित भोजन करना पड़ता है। सियार ने कहा, “मित्र! मैं पूर्वजन्म में वेदों का पारङ्गत विद्वान् और समस्त कर्मकलापों का ज्ञाता वेद शर्मा नामका ब्राह्मण था। उस जन्म में मैंने एक ब्राह्मण को धन देने का संकल्प किया था पर उसको दिया नहीं, उसी से इस बुरी योनि तथा बुरे आहार को प्राप्त हुआ हूँ।

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प्रतिज्ञा करके यदि ब्राह्मण को वह वस्तु नहीं दी जाती तो उसका दस जन्मों का पुण्य तत्काल नष्ट हो जाता है; अब तुम जाओ, तुम किस कर्म विपाक से वानर हुए। वानर बोला-मैं भी पूर्वजन्म में ब्राह्मण ही था। मेरा नाम वेदनाथ था और मित्र! पूर्वजन्म में भी हमारी – तुम्हारी घनिष्ट मित्रता थी। यद्यपि तुम्हें यह स्मरण नहीं। तथापि पुण्य के गौरव से मुझे उसकी पूर्णतया स्मृति हैं। उस जन्म में मैंने एक ब्राह्मण का शाक चुराया था, इसलिये मैं वानर है। ब्राह्मण का धन लेने से नरक तो होता ही है, नरक भोगने के बाद वानर की ही योनि मिलती है।
ब्राहाण का धन अपहरण करने से बढ़कर दूसरा कोई भयंकर पाप नहीं। विष तो केवल खाने वाले को ही मारता है, किंतु ब्राह्मण का धन तो समूचे कुल का नाश कर डालता है। बालक, दरिद्र, कृपण तथा वेद-शास्त्र आदि के ज्ञान से शून्य ब्राह्मणों का भी – अपमान नहीं करना चाहिये। क्योंकि क्रोध में आने पर वे अग्नि समान भस्म कर देते हैं। सियार और वानर इस प्रकार बातचीत कर ही रहे थे
कि दैवयोग स किंवा उनके किसी पूर्व-पुण्य से सिन्धुद्वीप नामक ऋषि स्वेच्छा से घूमते हुए वहीं पहुंच गये। उन दोनों मित्रों ने मुनि को प्रणाम किया और अपनी कथा सुनाकर उद्धार का रास्ता पूछा। ऋषि ने बडी देर तक मन-ही-मन विचारकर कहा-तुम दोनों श्रीरामचन्द्र जी के धनुष्कोटि तीर्थ में जाकर स्नान करो। ऐसा करने से पाप से छूट जाओगे।
तदनुसार सियार और वानर तत्काल ही धनुष्कोटि में गये और वहाँ के जल से स्नानकर सब पापों से मुक्त होकर श्रेष्ठ विमान पर आरूढ़ होकर देवलोक में चले गये।(स्कन्दपुराण, ब्राह्मखण्ड, सेतुमाहात्य अध्याय ३९)
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