औगद्वादस
जन्माष्टमी के चार दिन बाद औगद्वादस मनाई जाती है। विधि-प्रात:ः लकड़े के पटरे पर भीगी मिट्टी से सात गाय, सात बछडे, एक तालाब, सात ढक्कन वाले पतीले से बना लेते हें। पूजा के लिये थाली में (चने-मोठ, भीगे हुए) खीरा, केला, हल्दी, दूब (हरी घास) चीनी, दही, खुले पेसे, चांदी का सिक्का रख लेते हैं। एक लोटा कच्चा दूध मिला पानी भरकर रख लेते हें। ।
अपने माथे पर भी हल्दी से टीका कर लेते हैं। फिर कहनी रहते और सुनते समय अपने हाथ में मोठ लेकर छीलते रहते हैं ओर कहानी खत्म होने पर सातों पतीलों जेसे कुल्हियों में भरकर थोड़े-से तालाब पर भी चढ़ा दते हैं। साथ खीरा-केला, चीनी-पैसा भी चढ़ा देते हैं।
फिर एक परात पटरे के नीचे रखकर पटरे पर तालाब में सात-सात बार लोटे से (दृध मिला जल) सब स्त्रियां बारी-बारी से चढ़ाती हैं। और गाय-बछड़ों को हल्दी से टीका लगाती हैं। देवरानी-जेठानी या सास-बहू मिलकर फिरी परात वाला जल (चंदी का सिक्का व दूब हाथ में लेकर) पटरे पर चढ़ाती हैं। इसके बाद पटरे को धूप में रखकर और सूखने पर मिट्टी जमुनाजी में सिला देते हैं। और बाद में पटरे का सामान काम वाली को देते हैं।
परात के जल को सब स्त्रियां मिलकर सूरज को देती हैं। फिर सीधे हाथ पर ढाई छिले हुए चने-मोठ, दूब, दही-चीनी और उल्टे हाथ पर एक और आधा छिले हुए चने, मोठ, दूब, दही, चीनी रखकर उलटे हाथ वाला खा लेते हैं। सीधे हाथ वाला अपने पीछे फेंक देते हैं। फ थाली में चने-मोठ, रुपये. बेसन के लड॒डू, फल रखकर पानी से मिनसकर बायना निकालकर देते हैं। ओगद्वादस के दिन स्त्रियां पूरा दिन गाय का दूध, चावल, गेहूं नहीं खातीं, बेसन व मूंग की दाल की पकोड़ी-पूड़े कुछ भी बनाकर खाती हैं। इस दिन ब्रत नहीं किया जाता।
उद्यापन
जिस घर में इसी वर्ष लड़का उत्पन्न हो या लड़के की शादी हो उस वर्ष पटरे पर चौदह गाय, चौदह बछडे और सात कुल्हियाँ बनती हैं और एक बड़ी थाली या अखबर पर (चने, मोठ, एक खीरा, एक बेसन का लड्डू, पांच या ग्यारह रुपये) चोदह जगह ढेरियाँ बनाते हें, उन पर साडी-ब्लाऊज पैरों पड़ाई के रुपये, मिठाई, फल रखकर बायना मिनसकर सास को पैर छूकर देते हैं। सब घरों में भी एक-एक ढेरी भिजवा दी जाती हे। उद्यापन वाले वर्ष एक तो प्रतिवर्ष की तरह सामान्य बायन ओर दूसरा (साड़ी-ब्लाऊज, पैर पड़ाई वाले रुपये, चने-मोठ, खीरा, लड्डू-मिठाई) उद्यापन वाला बायना निकाला जाता हे।