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ख्याल – ६०
करि जासु भक्ति हो जाय मुक्ति,
पर जाय युक्ति यह सुखरासी।
कहै अमरदास दासानुदास,
चरणों की आस उनमें ठानी।
रोशन जमीर पीरों के पीर,
फक्कर फकीर इकलाशनी ।
सुमिरो प्रथम उसी सतगुरु का,
भ्रम
जिसने हमें यह ज्ञान दिया।
जाल से छुड़ाकर,
निर्भय पद निर्वाण दिया। टेक
उसी ने हमको पीर दिया,
और उसी ने हमको प्राण दिया।
उसी ने,
बना हमें इन्सान दिया।
पशु रूप से
पाप पुण्य जो कुछ था हमारा,
जुदा जुदा कर छान दिया।
बहुत-बहुत वरदान दिया।
दुनियां को तजि तोफान दिया।
निर्भय पद निर्वान दिया।।
सिर पर पंजा हमारे घर के,
दिव्य दृष्टि हो गई हमने,
भरम जाल से छुड़ाकर,
भाव भक्ति दी उसी ने हमको,
उसी ने सुमिरन ब्यान दिया।
युक्ति को मूल मठान दिया।
बैराग मन गजतान दिया।
उसी से हमको योग अरु,
उसी ने राग छोड़ाया हमें,
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