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“हम यहीं जल मरेंगे”

“हम यहीं जल मरेगे” 

जन्म भूमि भारत महि, है सबकी यह मात। 
इसमें जल-जल कर मरे, सीधी सच्ची बात॥ 
राय बहादुर धर्म राज काशीनाथ सिंह बहादुर गया के आनन्द भवन में एक बहुत बड़ा बाग है। उस बाग में नाना प्रकार के पुष्प प्रतिदिन खिलते हैं और अपनी मन मोहिनी सुंगधि से वहाँ के स्त्री-पुरुषों, बच्चों को अपने वश में कर लेते हैं। राय बहादुर साहब ने बहुत दूर-दूर से भिन्न-भिन्न प्रकार के पुष्पों के पौधे मंगवाकर अपने बाग में लगवा रखे हैं। 
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 पवित्र बाग कहने का असली कारण यह है कि राय बहादुर काशीनाथ ने दिसम्बर 1939 के दूसरे सप्ताह में अखिल भारतीय श्री रूपकला हरिनाम यश कीर्ति सम्मेलन इसी बाग में चार दिन तक कराया था। इस सम्मेलन में 5000 के लगभग जनता ने सम्मिलित होकर भगवान के पवित्र नामों का उच्चारण किया था और सम्मेलन की समाप्ति पर राय बहादुर काशी नाथ जी ने इसी बाग में एक चबूतरा जिस पर भगवान श्री राम, श्री जानकी माता एवं भ्राताओं सहित बैठे थे अभी तक स्मृति स्वरूप स्थापित कर रखा है। 
एक दिन उस बाग में वहाँ भाँति-भाँति के फूल खिल रहे थे, एक साधू बाबा आ गये और फूलों की वाटिका को देखने लगे। उन्होंने देखते-देखते देखा कि एक काला भौंरा प्रत्येक फूल पर बैठ-बैठ कर उनकी सुगंधि ले रहा है। परन्तु वह भौंरा चम्पा के पुष्प पर नहीं बैठता है और न ही उसके निकट जाता है। भौरे की यह हरकत देखकर साधू बाबा चम्पा के पुष्प को सम्बोधन करते हुए कहता है-. 

चम्पा तुझ में तीन गुण-रंग, रूप और वासु। 
अवगुन तुस में कौन सा, भंवर न आवे पास॥ 
 साधु बाबा के यह शब्द सुनकर चम्पा के फूल ने उत्तर दिया कि-

साधु मुझमें तीन गुण-रंग, रूंप और वासु। 
जगह-जगह के मित्र को, कौन बिठाये पास॥
 चम्पा ने कहा-साधु महाराज! भौरे का मन चंचल है तभी तो यह जगह-जगह मारा-मारा फिरता रहता है और किसी एक जगह स्थायी रूप में नहीं बैठता है। इसलिए मैं इस चंचल मन वाले और जगह-जगह घूमने-फिरने वाले आवारा भौरे को फटकने भी नहीं देती । साधू महाराज इतना सुनकर बाग से बाहर निकल कर जंगल की ओर चल दिये। जंगल में जाकर साधू बाबा ने एक विचित्र दृश्य देखा। उसने देखा कि एक पुराने वृक्ष पर हजारों की संख्या मे तोते बेठे हैं और उस वृक्ष पर बड़ी तीव्र आग लग रही है, तब तो महात्माजी ने जोर से आवाज लगाकर कहा-
आग लगी इस वृक्ष में, अरु जलने लागे पात।
 रे पक्षी तुम क्यों जलो, जब पंख तुम्हारे पास॥ 
साधु बाबा की बात सुनकर एक वृद्ध तोते ने ऊँचे स्वर में गरजकर कहा- 

मीठे फल खाते रहे, अरु गन्दे कीने पात। 
अब धर्म हमारा है, यहीं जलें वृक्ष के साथ॥ 
हे बन्धुओं! उपरोक्त दृष्टांत से हमें यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि हम सब इसी भारत भूमि में पैदा हुए हैं और यहीं पर सबने अपनी आयु पर्यन्त खूब चैन की बन्शी बजाई है, अब इस मातृ भूमि को छोड़कर हम कहाँ जायें? हमारे लिए तो पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा सिक्खस्तान जो कुछ भी है वह हिन्दुस्तान ही है। यदि एक बूंद समुद्र से अलग हो जाये तब उस बूंद की मृत्यु अवश्य हो जायेगी। अस्तु जो लोग हमारी जन्म भूमि हिन्दुस्तान में पाकिस्तान एवं अनेक स्थान बनाने तथा इसके टुकड़े करने का प्रयत्न कर रहे हैं वे अखण्ड भारत भूमि के अनादि गौरव को नष्ट भ्रष्ट करने की कुचेष्टा कर रहे हैं। 
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