Home Uncategorized सगठन मे ही शक्तिहै!

सगठन मे ही शक्तिहै!

2 second read
0
0
37

“’सगठन मे ही शक्तिहै!

 एक किसान ने अपने अंतिम समय में अपने सातों बेटों । | को बुलाया। उसने प्रत्येक बेटे से लकड़ी के गट्ठर को तोड़ने | ) को कहा। प्रत्येक बेटे ने उसे तोड़ने का प्रयत्न किया परन्तु । ) कोई भी सफल न हो सका। ( ( इस पर लकड़ी के गदठ्ठर को खोलकर एक-एक लकड़ी सबके हाथ में थमाकर उसे तोड़ने को कहा। सब बेटों ने ( अपनी-अपनी लकड़ी को तोड़ डाला। इस पर किसान ने अपने बेटों को समझाया कि लकड़ी ) के गटठर की तरह तुम भी इसी प्रकार मिलकर रहोगे तो ‘ तुम्हें कोई भी हानि नहीं पहुँचा सकता परन्तु मिलकर न रहे तो लकड़ियों की तरह तुम्हें कोई भी हानि पहुँचा सकता है। 

Load More Related Articles
Load More By amitgupta
  • राग बिलाप-२७अब मैं भूली गुरु तोहार बतिया,डगर बताब मोहि दीजै न हो। टेकमानुष तन का पाय के रे…
  • राग परजा-२५अब हम वह तो कुल उजियारी। टेकपांच पुत्र तो उदू के खाये, ननद खाइ गई चारी।पास परोस…
  • शब्द-२६ जो लिखवे अधम को ज्ञान। टेकसाधु संगति कबहु के कीन्हा,दया धरम कबहू न कीन्हा,करजा काढ…
Load More In Uncategorized

Leave a Reply

Check Also

What is Account Master & How to Create Modify and Delete

What is Account Master & How to Create Modify and Delete Administration > Masters &…