व्रत पालन
एक छोटे से गांव में एक कुशल महात्मा पधारे। वे वहाँ के लोगों को उनके अधिकार के अनुसार उपदेश देते थे। गाँव के अनेक लोगों ने उनसे ज्ञान प्राप्त किया।
जब महात्माजी उस गाव से जाने लगे तो गांव के लोगों को बुलाकर उन्होंने कहा-आज से तुम सब लोग कोई व्रत लो। जब मैं लौटकर आऊंगा तो देखूंगा कि तुमने जीवन में कितना सुधार किया है। महात्माजी के कहने से किसी ने देव दर्शनों का, किसी ने माला फेरने का, किसी ने गौ पालन का और किसी ने सड़क के गडढ़े भरने का व्रत लिया। एक बुद्धिहीन किसान ने कहा–मैं अपने पड़ौसी कुम्हार का मुख देखकर ही भोजन करा करूँंगा।
महात्माजी चले गये। धीरेधीरे सयम व्यतीत होने लगा। बहुत से आदमी अपने व्रत को भूल गये। अकेला वह पसीने की कमाई खाने वाला किसान हां अपने व्रत पर डटा रहा। एक दिन किसान जब खेत से लौटा तो उसे बड़ी जोर की भूख लग रही थी। वह जल्दी से कुम्हार का मुँह देखने गया परन्तु उस दिन कुम्हार मिट॒टी खोदने को गया हुआ था। किसान वहाँ पहुँचा और दूर से ही कुम्हार का मुँह देखकर राम का नाम उच्चारण करता हुआ घर को चल दिया।
कुम्हार को उस दिन जमीन की मिट्टी खोदते समय सोने का खजाना मिल गया था। उसे कुछ सन्देह हुआ तो उसने किसान को पास बुलाया। किसान ने दूर से ही कह दिया कि मैंने देख लिया है। कुम्हार समझा कि इसने सोना देख लिया है।इस कारण कुम्हार ने आग्रह पूर्वक किसान से कहा–देखो भाई! इस खजाने में आधा हिस्सा तुम्हारा और
आधा भाग मेरा। किसी से कुछ कहना मत।
,.._ खजाने के सोना का आधा भाग मिल जाने से किसान बहुत धनवान हो गया और उसको सदुपयोग करके सुखी हुआ। इस दृष्टान्त से यह समझना चाहिए कि वह किसान बर्तन बनाने वाले एक साधारण से कुम्हार का मुख देखने के ब्रत का पालन करने से अमीर बन गया तो फिर कर्म करने के लिए संसार में आया हुआ मानव रूपी किसान यदि अखिल विश्व के रचियता ईश्वर सम्बन्धी कोई ब्रत का पालन करे तो उसकी जन्म जन्मातर की भूख मिट सकती है।