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“लो अपनी कटीऔर लाओ मेरा पैसा”!

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“लो अपनी कटीऔर लाओ मेरा पैसा”! 

पुराने समय की बात है कि एक पेटू मनुष्य गुरु बनकर निरक्षर लोगों को अपना शिष्य बनाने लगा। अपनी वाकूपटुता से कुछ दिनों में वह समस्त गांव का गुरु बन गया। इसी गांव की एक औरत अपने मायके गई हुई थी। वहां कथा सुनते समय उसे एक शंका उत्पन्न हुई, उसे निवृत्त करने के लिए उसने इन गुरु से हाथ जोड़कर पूछा–कर्म करते हुए भी . जावात्मा केसे मुक्त हो सकती है? गुरुजी को इसका कुछ ज्ञान तो था नहीं। इसलिए कुछ इधर उधर की गप मारकर कहने लगे, ऐसी शंका तुम्हें हुई ही कयों। खबरदार कभी दूसरे की कथा मत सुनना, इससे पाप लगता है। श्री मदभागवत्‌ में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है–”संशयात्मा विनश्यति ” अर्थात्‌ शंका करने वाला व्यक्ति कभी मोक्ष प्राप्त नहीं करता और ”परधर्मा भयावह ” अर्थात्‌ पराया धर्म नरक में ले जाता है। इस प्रकार कहकर गुरुजी ने उसको उड़ता जैसा जवाब दिया। सब सुनकर भी वह औरत अपने प्रश्न पर डटी रही । अब गुरुजी ने कहा–देखो माई! यदि मैं तुम्हारी शंका का समाधान करने लगू तो मुझे भी नरक में जाना पड़ेगा। इसलिए तुम्हारी इस शंका का समाधान नहीं हो सकता। वह औरत समझदार थी। अत: गुरुजी की उड़ाऊ बातें सुनकर वह बोली—यदि तुम मेरी शंकाओं का समाधान करने में असमर्थ हो तो ”लो अपनी कंठी और लाओ मेरा पैसा ”। गुरुजी घबराये कि इस तरह तो सब लोग मेरे पीछे पड़ जायेंगे और मेरी फजीहत होती रहेगी। इस कारण रातों रात वे भाग खड़े हुए। 
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