“लोभ से हानि”! . .
एक बार की बात है कि एक आदमी अपनी बेटी का _ विवाह करने के लिए एक साहूकार के यहां से बर्तन मांगने गया। साहूकार बोला–किसी की जमानत पर ही बर्तन मिल सकते हैं। उसने साहूकार को जमानत दिलवा दी। उस आदमी ने सोचा अभी तो मुझे कई शादियां करनी हैं। ऐसे कब तक चलेगा। उसने उपाय भी सोच लिया। जब वह बर्तन देने गया तो उनके साथ पाच छ: छोटे बर्तन और लेता गया। उसने लालाजी से कहा–ये इसके बच्चे हुए हैं। लालाजी ने लोभ में पड़कर सोचा कि यह तो बहुत बड़ा बेवकूफ मिला है। इसलिए लालाजी ने सभी बर्तनों को रख लिया। अगली शादी के लिए जब वह बर्तन लेने गया, तो बिना जमानत के ही उसको इच्छानुसार बर्तन दे दिये। बर्तन लौटाते समय वह आदमी फिर से कुछ छोटे बर्तन साथ में दे आया और लालाजी से कहा कि इसके जो बच्चे उत्पन्न हुए थे ये भी मैं दे चला हूँ।
तीसरी बार वह आदमी फिर लालाजी के यहाँ जाकर बोला–अबकोी बार मैं बड़ी शानदार शादी करूँगा, इसलिए ताॉँबे-पीतल के बर्तनों से काम नहीं चलेगा। लालाजी ने बर्तनों के लोभ में उसे सभी सोने-चाँदी के बर्तन दे दिये। दो चार दिन बाद वह लालाजी के पास जाकर रोते हुए बोला-लालाजी! आपके तो सारे बर्तन मर गये।
लालाजी ने उस पर अपने बर्तनों के लिए मुकदमा कर दिया। जब न्यायाधीश ने उस आदमी से पूछा कि इनके बर्तन कैसे मर गये तो उस आदमी ने न्यायाधीश को पूरा किस्सा सुनाकर कहा कि जो बर्तन बच्चे दे सकते हैं तो वे बर्तन मर भी सकते हैं।