लियोनार्दो दा विंची, जिन्हें पुनर्जागरण काल के सबसे महान कलाकारों और वैज्ञानिकों में से एक माना जाता है, का जन्म 15 अप्रैल 1452 को इटली के विंची नामक गाँव में हुआ था। उनका पूरा नाम लियोनार्दो दि सेर पिएरो दा विंची था। उनके पिता, सेर पिएरो, एक धनी नोटरी थे और उनकी माता, कैटरीना, एक किसान परिवार से थीं। लियोनार्दो का बचपन विंची में बीता और वहीं उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की।
लियोनार्दो का प्रारंभिक जीवन साधारण था, लेकिन उनमें बचपन से ही कला और विज्ञान के प्रति गहरी रुचि थी। 14 साल की उम्र में, उन्हें फ्लोरेंस भेजा गया जहाँ वे प्रसिद्ध कलाकार एंड्रिया डेल वेरोक्चियो के शिष्य बने। वेरोक्चियो के साथ, उन्होंने चित्रकला, मूर्तिकला और धातुकार्य का अध्ययन किया। इस दौरान, लियोनार्दो ने अपनी कलात्मक और वैज्ञानिक क्षमताओं को निखारा।
लियोनार्दो दा विंची के चित्रों और कलाकृतियों ने उन्हें अमर कर दिया है। उनकी सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग्स में ‘मोनालिसा’ और ‘द लास्ट सपर’ शामिल हैं। ‘मोनालिसा’, जिसे ला जिओकोंडा भी कहा जाता है, अपनी रहस्यमय मुस्कान के लिए विश्व प्रसिद्ध है। ‘द लास्ट सपर’ में, यीशु मसीह और उनके बारह शिष्यों के बीच अंतिम भोज को दर्शाया गया है। यह पेंटिंग अपनी जटिलता और विवरण के लिए जानी जाती है।
लियोनार्दो ने न केवल चित्रकला में, बल्कि चित्रण और मानव शरीर की संरचना के अध्ययन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके द्वारा बनाए गए एनाटॉमी के चित्र आज भी चिकित्सा विज्ञान में उपयोगी माने जाते हैं।
लियोनार्दो दा विंची ने विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किए। वे एक महान आविष्कारक थे और उन्होंने कई यंत्रों और उपकरणों के प्रारूप बनाए, जिनमें उड़ने वाली मशीनें, टैंक, और सोलर पावर मशीनें शामिल हैं। उनके विज्ञान संबंधी नोट्स और स्केचबुक में उन्होंने प्रकृति, शरीर रचना, और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपने अवलोकनों को दर्ज किया। उनका ‘विट्रुवियन मैन’ एक प्रसिद्ध चित्र है जो मानव शरीर के आदर्श अनुपात को दर्शाता है।
लियोनार्दो दा विंची का जीवन व्यक्तिगत दृष्टिकोण से भी दिलचस्प था। उन्होंने कभी शादी नहीं की और न ही उनके कोई संतान थी। वे एक स्वतंत्र विचारक थे और अपनी जिज्ञासा के कारण हमेशा नई चीजें सीखने और खोजने में लगे रहते थे। उनके जीवन का अधिकांश समय इटली के विभिन्न शहरों में बीता, जहाँ उन्होंने कला और विज्ञान के क्षेत्र में अपने कार्यों को जारी रखा।
लियोनार्दो दा विंची के जीवन के अंतिम वर्ष फ्रांस में बीते, जहाँ वे फ्रांसिस प्रथम के संरक्षण में थे। 2 मई 1519 को, 67 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उन्हें क्लोस लुसे के चैपल में दफनाया गया।
लियोनार्दो की विरासत आज भी जीवित है और उनके कार्यों को कला, विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अत्यंत सम्मानित किया जाता है। उनकी पेंटिंग्स, स्केच, और वैज्ञानिक नोट्स को आज भी अध्ययन और अनुसंधान के लिए उपयोग किया जाता है। उनके जीवन और कार्यों ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया है और वे हमेशा एक महान प्रतिभा के रूप में याद किए जाएंगे।
लियोनार्दो दा विंची का जीवन एक महान प्रेरणा का स्रोत है। उनकी अद्वितीय प्रतिभा, व्यापक ज्ञान, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने उन्हें विश्व के महानतम व्यक्तियों में से एक बना दिया। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि जिज्ञासा, कठोर परिश्रम और सृजनात्मकता से हम किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं। उनकी कहानी सदैव हमें प्रेरित करती रहेगी।