मूरवों मे विद्वान की दुर्दशा
एक समय की बात है कि शहर से एक बारात किसी गाँव में गई | विवाह के समय शहर के विद्वान पंडितजी की मुठभेड़ गाँव के मूर्ख पंडित से हो गई। गाँव के पंडितजी केवल अमर कोष को ही जानते थे। अत: वे विवाह में अमर कोष के श्लोक बोलने लगे।
शहरी पंडितजी बोले–तुम तो अमर कोष के मंत्र बोलकर विवाह करा रहे हो | तुम्हें शादी कराना नहीं आता।
गाँव के पंडितजी चुप हो गये और बोले–आप ही विवाह करा दीजिए। ‘
जैसे ही शहर के पंडितजी ने हवन के समय स्वाहा बोलना शुरू किया तो गाँव के पंडितजी गाँव वालों से बोले–अरे भाई पंचों! तुमने देखा, मैं तो अमर कोष से विवाह करा रहा था, परन्तु यह तो मरण कोष से विवाह करा रहा है। ये मंत्र तो तेरहवीं में बोले जाते हैं, यह उन्हीं मंत्रों को बोल रहा है। स्वाहा-स्वाहा बोलकर लड़के को स्वाहा करेगा या लड़की को स्वाहा करेगा। मैं तो लड़के और लड़की दोनों को अमर बना रहा था।
अपने पंडितजी की बात सुनकर गाँव वाले आपस में बोले–हमारे पंडितजी ठीक ही तो कह रहे हैं।
गाँव वालों ने शहर के पंडितजी को मूर्ख बनाकर वहाँ से निकाल दिया।