माल गुजारी की माफी
मुमुक्ष नाम का एक राजा था। उसे किसी ज्ञानी महात्मा ने मंत्र प्रदान किया। बाद में अनेक प्रजाजनों ने भी उन्हीं महात्मा से मंत्र ग्रहण किया। इस प्रकार एक गुरु की एक सत्संग मंडली बन गयी। राजा महात्मा के वास्तव में प्रेमी थे परन्तु शेष अन्य लोग बाहरी दिखावे के लिए प्रेम का ढ़ोंग रचे हुए थे। जब राजा की तरफ से जमीन की माल गुजारी वसूल का समय आया तो प्रजाजनों ने कहा–राजा तो हमारे भाई हैं। उन्हें हमसे माल-गुजारी नहीं लेनी चाहिए। यह सुनकर राजा ने मालगुजारी माफ कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि सारी प्रजा आलसी और निकम्मी हो गई। सारी जनता ज्ञानी बनकर मनमानी करने लगी। राजा शान्त रहा और राज्य कर्जदार हो गया। | इसी बीच राजा के गुरुजी वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने राजा से पूछा–यह क्या हो गया है? राजा ने सारी बात उन्हें बता दी। गुरुजी ने विचार किया कि ये लोग तो ज्ञान का दुरुपयोग कर रहे हैं। अतएव यह जानना आवश्यक है कि इनमें से कितने लोग ढ़ोंगी हैं। उन्होंने ढिंढोरा पिटवाकर सब लोगों को एकत्र कर लिया। फिर सबके समक्ष कहा कि राजा एक भयानक बीमारी से ग्रस्त हैं। उस बीमारी को दूर करने के लिए किसी गुरु भाई का तेल निकालना आवश्यक है। केवल एक सच्चे प्रेमी को छोड़कर सब भाग गये। उसने गुरु आकर कहा, आप मेरा जिस तरह से तेल निकालना चाहे निकाल सकते हैं। यदि यह शरीर परोपकार | में काम आ सके तो मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी। | उसकी बात सुनकर गुरु जी अति प्रसन्न हुए और राजा को | “केवल इस व्यक्ति को मालगुजारी माफ करने का आदेश देकर चले गये।