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महापुरुषों की महिमा

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महापुरुषों की महिमा 

एक बार नारद ऋषि घूमते हुए मृत्युलोक में पहुच गये। एक गृहस्थ ऐसा था जिसने बहुत प्रयत्न किये परन्तु उसके कोई पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ। उसने नारदजी से विनती की -हे स्वामी | मुझे ऐसा वरदान दो जिससे मुझे पुत्र रल की प्राप्ति हो जाए। नारदजी ने कहा मैं भगवान विष्णु से पूछकर उत्तर ‘ दूँगा। विष्णुजी के पास जाकर नारदजी ने कहा–” मैं उस गरीब गृहस्थ को वचन दे आया हूँ। इसलिए उसको पुत्र रत की प्राप्ति होनी चाहिए।” भगवान विष्णु बोले–उसके भाग्य ‘ में सात जन्म तक पुत्र नहीं लिखा है, तब इस जन्म में उसे पुत्र _ कैसे दिया जा सकता है? 
नारदजी ने मृत्यु लोक में पहुँचकर उस गृहस्थ को विष्णु ‘ जी की बात से अवगत कराया। वह बहुत निराश हो गया। उसी समय उस गाँव में एक बहुत बड़े ज्ञानी राग-द्वेष से . विहीन वनवासी महात्मा पहुँचे। महात्माजी ने बहुत दिनों से कुछ भोजन नहीं किया था। 
वे गाँव में घूम-घूम कर कह रहे थे कि जो व्यक्ति मुझे जितनी रोटियाँ खिलायेगा, उसको उतने ही पत्र प्राप्त होंगे। उस गृहस्थ ने महात्माजी को तीन रोटियाँ प्रदान की। महात्मा जी उसे आशीर्वाद प्रदान कर चले गये। कुछ समय बीत जाने पर नारदजी उस गृहस्थ के घर पर पहुँचे तो उन्होंने उसके यहाँ तीन-तीन पुत्रों को खेलते पाया। क्‍ 
गृहस्थ ने नारदजी से कहा–देखो एक महात्मा जी के _ आशीर्वाद से ये तीन पुत्र उत्पन्न हुए हैं, जबकि आप के कथनानुसार मेरे भाग्य में एक भी पुत्र नहीं लिखा था। इमसे नारदजी को भगवान विष्णु पर बड़ा भारी क्रोध आया और थे उसी आवेजश में विष्णु जी के पास गये। उन्हें देखकर भगवान विष्णु ने ढोंग करते हुए कहा -अरे! मैं मरा जा रहा हूँ, कोई दवाई दे दो। नारदजी ने उनसे दवाई का नाम पृछा। भगवान ने बताया कि यदि तुम किसी भक्त का हृदय काटकर ला सको तो उसका रुधिर मलकर मैं इस दुःख से छुटकाग पा सकता हूँ। नारदजी भक्त का हृदय ढूँढ़ने को चल पड़े परन्तु कोई. 
भी भक्त अपना कलेजा देने को तैयार नहीं हुआ। अपितु कुछ भक्त नारदजी से कहने लगे कि तुम ही अपना कलेजा । काटकर क्‍यों नहीं अर्पण कर देते। तुम तो स्वयं भक्त हो 
‘ फिर दूसरों से कलेजा क्‍यों माँगते फिर रहे हो। अन्त में उन्हें 
‘ बह भक्त मिले जो पुत्र का जन्म दिलाने वाले थे। नारदजी ने ( 
| उन्हें विष्णु के दुःख की बात बताई तो वे नारदजी के साथ | 
, भगवान विष्णु के पास पहुँचकर बोले–हे दीन बन्धु! यदि 
‘ मेरा कलेजा तुम्हारे काम आ सके तो इसे मैं आपको अर्पित 
‘ करता हूँ। आप इसे तुरन्त काट लीजिए। 
भक्त की इतनी तत्परता देखकर विष्णुजी नारदजी से 
‘ बोले–देखो! ऐसे महापुरुष ही निःसंतान को पुत्र दे सकते 
‘ हैं, हमारे जैसे व्यक्ति नहीं क्योंकि तुम्हारे पास अपना कलेजा 
, होते हुए भी तुम मेरे लिए अन्य भक्त का कलेजा माँगने को 
| गये थे। विष्णु जी की बात सुनकर नारदजी शरमा गये। यही 
‘ है महापुरुषों की महिमा और यह है उनका त्याग। 
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