भजन साभारी लोगों की दशा-११६
मैं कैसे कहूं कोई न माने कही,
कीन सतनाम भजन यह विरंधा आय आय हरी।
आतम त्यागी पषाणहि पूजो धरि दुलहा दुलहिन,
किरबन आगे करता नीचे है अन्धेर यही।
पशु पक्षी को मार यज्ञ में होवे निज स्वारथ अबही
एक दिन तुझसे आया अचानक बदला लेय सही।
पाम कर्म करि सुख का चाहे यह कैसे निगही,
पार उतरना चाहे सिंधू ले स्वान की पूंछ गही।
कहै कबीर शहु में जो कुछ माने ठीक वही,
कौन न सुने कहि जग मेरा कहि हार्यो सबही।
आतम त्यागी पषाणहि पूजो धरि दुलहा दुलहिन,
किरबन आगे करता नीचे है अन्धेर यही।
पशु पक्षी को मार यज्ञ में होवे निज स्वारथ अबही
एक दिन तुझसे आया अचानक बदला लेय सही।
पाम कर्म करि सुख का चाहे यह कैसे निगही,
पार उतरना चाहे सिंधू ले स्वान की पूंछ गही।
कहै कबीर शहु में जो कुछ माने ठीक वही,
कौन न सुने कहि जग मेरा कहि हार्यो सबही।