भगवान को ही मान दो
प्राचीन काल में एक सत्यवादी राजा का नौकर बहुत ही खुशामदी था। राजा को यह बात बिल्कुल पसन्द न थी। एक दिन राजा ने उसे समझाने की दृष्टि से उसे समुद्र के हरे घूमाने ले गया। राजा समुद्र के किनारे कुर्सी डालकर ठ गया। अब खुशामदी नौकर ने खुशामद करनी शुरू कर दी। ‘ वह बोला–हे राजन्! आप इस पृथ्वी के स्वामी हैं। समुद्र ‘ आपको आज्ञा मानता है। आप देवता के समान हैं। इसी समय समुद्र में ज्वार उठने लगा।
राजा ने कहा–ओरे समुद्र! पीछे हटजा।
समुद्र नहीं हटा।
राजा ने फिर कहा–समुद्र तू पीछे क्यों नहीं हटता है? हट जा, नहीं तो तुझे दण्ड दिया जायेगा।
परन्तु समुद्र में ज्वार बढ़ता ही गया। अब राजा ने उम खुशामदी नौकर की ओर निहार कर कहा–ओ खुशामदी टट्टु, तेरी खोदी खुशामद से हम ठगे जायेंगे, ऐसा नहीं हो सकता।
पृथ्वी, पानी, समुद्र, सूर्य और चन्द्रमा को प्रभु ने बनाया है और ये सब उसी प्रभु के आधीन हैं। इसलिए उस प्रभु की वन्दना करो। उसी की जय बोलो। हमारी खुशामद से तुझे क्या मिलेगा?
देखो न, यह साधारण सा ज्वार मेरे कहने से नहीं रुका। इसलिए भगवान को ही मान दो और उन्हीं की सेवा करो।