बेसमझी
कएक बार एक लालाजी व्यापार हेतु बनाग्मी माड़ियाँ ‘ खरीदने बनारस गये | उन्होंने विचार किया कि एक पन्ध दो क् काज वाली कहावत यहाँ चरितार्थ हो सकती है । एक कार्य , तो साड़ियाँ खरीदना और दूसरा कार्य गंगाजी में स्नान करके ‘ पुण्य कमाना। उन्होंने अपना सामान एक धर्मशाला में ग्ख दिया। वह गंगाजी के किनारे चले तो वहाँ पहुँचकर उन्होंन , एक नाई को देखा तो सोचा कि इससे हजामत बनवा ली ( जाये। उन्होंने विचार किया कि किसी सैलून मैं फँस गया तो , पता नहीं वहाँ कितने रुपये देने पड़ जायें। ( लालाजी ने बनारस के विषय में बहुत कुछ सुन रखा था। उन्होंने सोचा कि मैं तो यहाँ के तौर-तरीकों से भी , अनभिन्ञ हूँ। अच्छा यही रहेगा कि नदी किनारे ही हजामत , बनवाली जाए। उन्होंने नाई से हजामत बनाने को कहा। नाई ( ने लालाजी की हजामत बना दी। लालाजी ने नाई को एक । चवतन्नी दी। नाई ने कहा–मैं चवन्नी नहीं लेता। लालाजी , सिटपिटाकर आठ आने देने लगे परन्तु नाई आठ आने लने ‘ को भी तैयार नहीं हुआ। अब लालाजी घबरा गये परन्तु | उनको एक अकल सूझी। उन्होंने नाई से कहा कि हम उस , धर्मशाला में ठहरे हुए हैं । हमारे रहने की जगह देख लो । कल ‘ आकर हमारे पास से कुछ और ले जाना। नाई लालाजी के साथ जाकर वह स्थान देख आया, जहाँ लालाजी ठहरे हुए थे। दूसरे दिन जब नाई लालाजी के पास कुछ लेने को गया तो लालाजी ने कहा–अरे भाई! लेना-देना तो बाद में होता रहेगा। गर्मा के दिन हैं, बर्फ रखी हुई है, चीनी भी है। उस अलमारी से दही निकालकर लस्सी बनाकर तो पी लो । जब तुम यहाँ हमारे पास आये हो तो कम से कम इतनी खातिरदारी तो होनी ही चाहिए.। नाई अलमारी में से दही का (| बर्तन उठा लाया। उस दही के बर्तन में लालाजी ने कुछ | पिसा हुआ कोयला और मिट्टी को मिलाकर डाल रखा था। नाई ने दही को देखकर कहा कि यह दही तो खराब है। । इसमें कुछ मिला हुआ है। लालाजी ने कहा-भाई! दही को बर्तन में ही पड़ी रहने दो और ” कुछ ” को तुम निकाल कर ले जाओ। नाई ने जब देखा कि यहाँ पर तो आठ आने क्या ‘ च्ञार आना भी नसीब नहीं हो रहे हैं तो उसने लालाजी से ‘, क्षमा माँगी और कहा मेरी मजदूरी के चार आने पैसे ही मुझे ) दे दीजिये। लालाजी ने समझाकर कहा कि बाद में कभी ) किसी यात्री से ऐसी जिद मत करना, इतना कहकर लालाजी ने उसे चार आने देकर विदा कर दिया।