परिवर्तन ही जीवन है
बचपन में 2 पंक्तियां सुनी थीं, ‘जो जा के न आए वह जवानी देखी, जो आ के न जाए वह बुढ़ापा देखा.’ उस समय पूरा अर्थ समझ नहीं पाई थी. लेकिन वक्त ने धीरे धीरे सब समझा दिया. विवाह से पहले अधिकतर मस्ती का माहौल या यों कहिए कोई नियम, कानून सख्ती से लागू नहीं होते. कुछ युवक, युवतियां अपने लक्ष्य की ओर गंभीरता से जुटे भी देखे जा सकते हैं. जब आती है वैवाहिक, गृहस्थ जीवन की जोखिम, जिम्मेदारियों से भरी मिलीजुली डगर तब सपने कुछ और होते हैं, हकीकत उस के विपरीत, इस में दोराय नहीं. दूरदर्शन पर चकाचौंध भरे नाटक देख कर चढ़ती जवानी बिना पंखों के उड़ते देखी है, लेकिन वास्तविक जीवन में कटती कैसे है, यह किसी से छिपा नहीं.
विवाह के बाद लड़के के माता पिता बच्चे के लिए नए घर की तलाश में होते हैं जो उन को सुविधाओं के साथ सुकून दे सके. लड़की के मां बाप की भी यही तमन्ना रहती है कि उन की बेटी, छोटे से छोटे परिवार में, बस मियां बीवी तक की सीमित यूनिट में रहे. परिवर्तनशील दौर में गृहस्थाश्रम से जुड़ते ही कुछ में कुछ ज्यादा ही परिवर्तन आता है. बेटा नई जीवनसंगिनी ले आया, बेटी नया जीवनसाथी. गृहस्थ संसार बस गया. माता पिता अपने उसी दायरे में अपने साधनों में प्रसन्न व संतुष्ट दिखते हैं. कई निराश, दुखी और क्षुब्ध भी देखे गए हैं, जिन्होंने महल से घर बनाए थे इस आशा से कि बड़े होने पर बच्चे उन के साथ रहेंगे, फिर आनंद तथा भरपूर खुशियां होंगी. खैर…
कनाडा में मिस्टर वालिया का आलीशान बंगला इस का जीताजागता प्रमाण है. ऐसे एक नहीं, अनेक बड़े घर यहां सूने पड़े हैं. हालात के चलते पुराने जोड़े में शारीरिक, मानसिक परिवर्तन आना शुरू हो जाता है. जीवन की पटरी थोड़ी धीमी होनी शुरू हो जाती है. मुंह का स्वाद बदलना शुरू हो जाता है, पाचनशक्ति नया रूप दिखाने लगती है. अकसर तीखे व्यंजनों से परहेज होना शुरू हो जाता है. गाड़ी या कोई भी वाहन चलाते समय घबराहट होने लगती है. ये वे बातें हैं जिन पर आप को कभी नाज था. जिन डाक्टर या वैद्य से जीवन में बहुत कम मिले थे उन से परिचय करना या मित्रता रखना समय की जरूरत बन जाती है. इस के अलावा यदि कोई बड़ी बीमारी घेर ले तो समझें चिंता को बुलाने की जरूरत नहीं, वह खुद आप की स्नेही होगी.
यह बात अलग है कि विदेश में रहते हुए लोगों के लिए थोड़ा सुधरा रूप है. एक बड़ा परिवर्तन जो दिखता है, वह है ढलती उम्र में कुछ लोगों का ईर्ष्यालु, चिड़चिड़े, जिद्दी या शंकालु स्वभाव का हो जाना. कुछ के तो यह बस की बात नहीं रहती, कुछ जानबूझ कर न स्वयं खुश रहते हैं न दूसरों को खुश देखना चाहते हैं. अत्यधिक कंजूसी की आदत, आफत बनने लगती है. टीकाटिप्पणी के बिना रह ही नहीं पाते. जबकि यह उचित नहीं. एक सुझाव, यदि हो सके बढ़ती उम्र में अपने निकटतम रिश्तेदारों, मित्रों से फोन पर अकसर बातचीत किया करें. वे दुखसुख में काम आ सकते हैं. वैसे भी, इसी बहाने आप का मन बहलाव हो जाएगा.
पतिपत्नी के संबंधों में बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिलता है. अकसर पति बाजी पहले हारता है. पत्नी थोड़ी सुस्त हो जाती है. जबकि सब के साथ एक सा तजरबा नहीं हो सकता. फिर समझौते का लिबास ओढ़े दोनों परस्पर प्रसन्न रहने की चेष्टा करते हैं. ऐसी मिलतीजुलती शिकायतें कनाडा में ही नहीं भारत में भी सुनी हैं कि ‘मेरे पति तो कितने वर्षों से वैरागी ही बन गए हैं’, ‘पुरुष लोग अपनी अर्धांगिनी के बारे में क्या सोचते या बतियाते होंगे, मुझे नहीं पता.’
वहीं, कई औरतें भी ढलती उम्र से पहले ही रिश्तों से विमुख सी हो जाती हैं. कारण कुछ भी हो सकता है. परंतु दंपती में परस्पर आकर्षण बना ही रहना चाहिए. यह सुखद दांपत्य का मूल आधार है. इस बढ़ती उम्र में कुछ ‘बिगड़े बुद्धिजीवी’ बहक भी जाते हैं. ऐसे समय में मियांबीवी के रास्ते अलगअलग होते भी देखे गए हैं. गृहस्थी की गाड़ी अपना संतुलन खो बैठती है. यहां तक कि तलाक की नौबत भी आ जाती है. ऐसा भारत में कम, कनाडा या दूसरे देशों में यह बीमारी तो विवाह के कुछ समय बाद ही जोंक सी जकड़ने लगी है. कनाडा में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां दुखी बेटी अपने मातापिता के घर और परेशान बेटा अपने मातापिता के पास है, दूर तक कोई हल दिखता नहीं.
ढलती उम्र का लें मजा
बढ़ती उम्र को हमेशा सकारात्मक लें. मानवीय गुण जैसे संतुष्टि, सहनशीलता, दूरदर्शिता, गंभीरता तथा त्याग की भावना को अपनाएं. अपनी वेशभूषा तथा पहनावे के स्तर को अपनी सामर्थ्य के मुताबिक गिरने न दें. सामाजिक दायरे से एकदम गायब न हो जाएं. जब भी अवसर मिले व स्वास्थ्य साथ दे, लोगों से मिलेंजुलें. वानप्रस्थ आश्रम का आनंद घर में ही रह कर लें. कमल का फूल सब से बढि़या उदाहरण है, उस को अपना प्रेरणास्रोत बनाएं. बढ़ती, ढलती उम्र का मजा लें. इसे अभिशाप नहीं वरदान समझें. 50 वर्ष बीत जाने के बाद खुद को उत्तम या जिस तरह संभव हो, ढालने की भरपूर कोशिश करें. इसी में भलाई है. यदि ढलती, बढ़ती उम्र में हर छोटी जीत को बड़ी जीत और हर बड़ी हार को छोटी हार समझें तो बात ही क्या.